तेरी चाहत में अपना मैं रब देखता हूँ -
इबादत का जब भी सबब देखता हूँ
तेरी चाहत में अपना मैं रब देखता हूँ -
नेमत है रब की ये मुकद्दर हमारा
उलफत की निगाहों से सब देखता हूँ -
गुजरे जब गलियों से रहबर हमारे
लौट आने की उनकी डगर देखता हूँ
सुरमई शाम की हो गुलजार महफिल
मसर्रत -ए - शब की सहर देखता हूँ -
1 टिप्पणी:
ओय मस्त और बउत सोणी रचना , सर धन्यवाद !
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