बुधवार, 24 सितंबर 2014

तेरी चाहत में अपना मैं रब देखता हूँ -

इबादत का जब  भी  सबब  देखता हूँ
तेरी चाहत में अपना मैं रब देखता हूँ -

नेमत  है  रब   की  ये  मुकद्दर हमारा
उलफत की निगाहों  से सब देखता हूँ -

गुजरे  जब  गलियों  से  रहबर हमारे
लौट आने  की  उनकी  डगर देखता हूँ

सुरमई शाम की हो गुलजार महफिल
मसर्रत -ए - शब  की  सहर  देखता हूँ -