जरा कम बोलती हैं -
दरकती पलों में ,न जुबा खोलती हैं
दिल की दीवारें जरा कम बोलती हैं -
भूल जाता जमाना है जख्मों को देकर
दिया कब है किसने, ये नहीं भूलतीं हैं-
यादों के घर से जब निकली बारातें
दुल्हन की डोली के पट खोलती हैं -
जमाने की आँखों ने जो मंजर दिखाये
भावना की तराजू पर रख तोलती हैं -
- उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-09-2014) को "मेरी धरोहर...पेड़" (चर्चा मंच 1743) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर भाव लिये पंक्तियां.
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