खुलकर कर हंसने वाले हैं जी
हम मुस्कराना क्या जानें -
हम दिल लूटाने वाले हैं जी
दिल चुराना क्या जानें -
देखी बस्ती दिल वालों की
बिक रहे मनमाने दाम,
पत्थर ले, कर, चलने वाले
फूलों से निभाना क्या जानें -
फेंक दिया दिल फूँक दिया जी,
ये रश्म अजीही कायम है
दिलदार दिलों पर मिटते हैं
दिल को मिटाना क्या जानें -
चाहा जब आबाद किया
जब चाहा बर्बाद किया ,
वो पत्थरदिल सौदागर हैं जी
दिल को लगाना क्या जानें-
- उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (18-10-2014) को आदमी की तरह (चर्चा मंच 1770) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर
दिलदार दिलों पर मिटते हैं
दिल को मिटाना क्या जानें -
सुन्दर
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