दिल गैरोंके बीच भी कोई अपना तलाशता है
बीच आवारा बादलों के चाँद रस्ता तलाशता है-
हो रही दर्द की बारिस सुबह से वो खुले न खुले
न सूखे पर अभी परिंदा फिर भींगना चाहता है -
गैरतमंद होठों तक ,चल के जाम आया उदय
बना हलक के दो घूंट अब आईना तलाशता है-
कितना कमजोर है बदन जज्बा ए आशिकी का
हर दिल में जा अपना आशियाना तलाशता है -
बिकने के बाद बिछने के बाद स्वाभिमान जागा
अब बर्बाद जिंदगी का मायिना तलाशता है -
उदय वीर सिंह
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2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर ।
Behad lajawaab prastuti,,,,,!!
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