लिख पाता हूँ -
नहीं बन पाता हूँ -
चाहता हूँ हसीं ज़ुल्फों में समा जाऊँ
पर गमजदों के पास आता हूँ -
रंग महलों की खुशी मुझे लुभाती है
झोपड़ी के पास ठहर जाता हूँ -
देख प्रतीक्षा में दोनों हैं एक मौत एक मांस की
मंजर देख सिहर जाता हूँ -
कोशिशे नाकाम हैं प्रेम गीत लिखने की
दर्द कहाँ भूल पाता हूँ -
न बता मुझे स्वर्ग भी कहीं रहता है उदय
अपनी शक्ल से डर जाता हूँ -
उदय वीर सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें