बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

कहानी बन के देख -

सूखते  गए  नैन  दर्द  की बरसात जब आयी 
किसी गरीब  की  आँख का पानी बन के देख -

तलाश में दुष्यंत की शकुंतला दीवानी होती है 
अंगुली में खोये प्यार की निशानी बन के देख- 

उदय जला  हुआ  शजर परिंदों  को क्या देगा 
नीड़  जले शिशु,साखों की कहानी बन के देख -

किसी कर्ण और कुंती का दर्द कितना गहरा है 
किसी संजय की आँखों  निगहबानी करके देख -

                                             
- उदय वीर सिंह  



  

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

अपना वतन है

जो बसा  रग- रग में मेरे ,वो  मेरा अपना वतन है
जन्म  से  है आशियाना ,मौत  पर  मेरा  कफ़न है -

पी गरल आशीष देता ,हिय  सरल  सोने  सा मन है
स्वर्ग सा है क्षितिज पावन,श्रेष्ठतम निर्मल गगन है -

उनको  भी  चाहा , जो न चाहा ,आग बोया अंक में
बन के सावन टूट बरसा मेरे वतन शत शत नमन है -

हर जनम में गोंद तेरी बन के आश्रय मम मिले 
कर सकूँ मैं शीश अर्पण चरणों में तेरे फिर भी कम है -



- उदय वीर सिंह

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

आभार आपका ..

प्रिय मित्रों ! ,बुद्धजीवियों आप ने वो मुझे मुकाम  दिया,  दिलों में बसाया ,हृदय से आभारी हूँ  |
**
मैं कहाँ हूँ मेरा किधर है रास्ता
ये मुझे नहीं मालूम ,
और तेरी फितरत है मुझे रास्ता बताने की......

                             -  उदय वीर सिंह


गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

सुबह का भूला

सुबह  का  भूला  शाम  को  दर पाये 
निराश, जिंदगी से लम्बी उमर पाये- 

ताजमहल की  बात गरीब कैसे कहे 

कम से कम  रहने को एक घर पाये -

काँटों की फसल से बसर कहाँ होता 

छाँव  के  जानिब  एक  शजर  पाये -

जीने  को  दो  हाथ मजबूत वो चंगे हैं 

इल्मदां  बने   हाथों   में   हुनर  आये -

अभी क्या  जो पाये  हैं  गम   कम हैं

ग़मख़ारी को फौलाद का जिगर पाये - 

दिल  में  हसरत  भी  है  जुस्तजू  भी 

देखने को  मोहब्बत भरी  नजर पाये -

                            -   उदय वीर सिंह 


मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

भाषा शहरी हो गयी है -

बोलती थी जुबान अब गूंगी है 
तासीर कानों की बहरी हो गयी है 

मेरी देशी भाषा दिल के करीब थी 
न जाने कब वो शहरी हो गयी है -

राजकुमारी थी दादके नानके में 
ससुराल में बेटी महरी हो गयी है -

एक मैदान में खेला करते कबड्डियां 
वो सीमा खायीं बन गहरी हो गयी है -

कितनी विशाल थी प्यार की  झील 
सिमट कर आज  गगरी हो गयी है -

कौरवों के हिस्से में बसंत आया है
पांडवों  के हिस्से बदरी हो गयी है -

                         - उदय वीर सिंह  

रविवार, 16 फ़रवरी 2014

अवसादियों का तमाशाई दिन ----

विकृतियों को  प्यार कहते हो 
नंगे  को  समझदार  कहते हो -
आत्म-विस्वास से बहुत दूर कम्पित
अवसादी दिन  को त्यौहार  कहते  हो -


हृदय की क्यारियों में प्यार पल्लवित न हुआ
दो पल के जुनूनी हनक को संस्कार कहते हो -

टूट जाता है पछुआ पवन के हलके झोंकों से
सरकंडे को सागर में किश्ती की पतवार कहते हो- 

संत कबीर ने कहा कभी प्रेम हाट में बिकता नहीं
अपने पर कम दूसरों पर ज्यादा एतबार करते हो- 

प्यार अंतहीन सीमाविहीन शर्तहीन प्राण -वायु है 
जो बहता है रगों में उसे तारीख में शुमार करते हो- 

फूल और कसमों से मक्कारी की बू ही आती है 
हम उसे सौदाई कहते हैं तुम वफादार कहते हो -

- उदय वीर सिंह




गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

उस आँचल को कहता मैला है -


किस  जीवन   की   बात  करूँ 

सिर्फ  विषधर  नहीं  विषैला है- 
पिया दूध  जिस   आँचल  का 
उस आँचल को कहता मैला है -

कलम की स्याही  कम  न  हुई
वो   बेचा  खून   भरने  के  लिए 
बैठा  है  अपाहिज निचली सीढ़ी
कुछ पाने  की  आश  अकेला  है -

दुनिया  से   पसारा  था  आँचल 
जब  बेटे  की  फ़ीस  चुकानी थी 
अब जीवन की निष्ठुर संध्या में 
कर  याचन  का  बेबस   फैला है -

थे कर   में  चुभे  तकुए  कितने 
पर  गति  चरखे की कम न हुई 
दिया   निवाला   भूखे  रह  कर 
माँ विस्मृत स्मृतियों में लैला है - 

                          उदय वीर सिंह 




बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

भाया बसंत

गाया बसंत 

आया बसंत, भाया बसंत 
मधुर  राग , गाया बसंत-  

आँगन ने कहा आँचल ने कहा 
सजनी  ने कहा साजन ने कहा-
जड़ चेतन  में राग  मधुर सज  
प्रेम  भरी  मधु  गागर ने कहा- 

किसलय कली महकाया बसंत - 

रस पोरी में  मद  गोरी  में भरा 
नेह  पतंग  संग   डोरी  में भरा-
रंग  रूप  निधि  क्षितिजा संवरी 
तन पीत -प्रसून परिमल से भरा-

अंग -  प्रत्यंग  समाया  अनंग -

अतिशय  अभिनदन  भ्रमरों का 
किस  कली कुसुम की छाँव गहुँ 
मधुमास बसंती  जग मद पसरा
एक  पादप  की  क्या  बात कहूं -

विस्मृत  पल  थे  लाया  बसंत-
किसी देव लोक से आया बसंत -

                             -  उदय वीर सिंह