गुरुवार, 27 मार्च 2014

जय बोलें किसकी ..

बोल कलम !जय बोलें किसकी 
किसके यश किसके अपयश की-
षड़यंत्रो  के  मद महासमर  में 
अर्जुन  की या जयद्रथ  वध की -
***
सफ़ेद - झूठ   के   दस्तावेजों 
कसमें खाकर कहने वालों की 
ऊँचे  मोल, न्याय  से   वंचित    
जन- पथ  या जगमग पथ की -
***
हो बंधी आश  जंजीरों से जब
निष्फल  क्रंदन  है  याचन भी 
अन्याय  समर्थित  उद्दघोष उठे 
तो जनगण की या जनपथ की -

                     -  उदय वीर सिंह 

मंगलवार, 25 मार्च 2014

वो आँख भला ....

ऐसी भी  घोर निराशा क्योँ  
सुबह नहीं होती कैसे -

सत्य विलम्बित हो सकता है 
रचना खंडित होती कैसे -


आरत मन की भाव प्रवरता
विक्षोभ तली खोती कैसे -


जो मष्तिष्क,हृदय, हो सत्य निष्ठ
भाग्य भला सोती कैसे -


जब भाव भरे सम्पूर्ण सृजन के  
वो आँख ला रोती   कैसे-  


उदय वीर सिंह 
                                   


शनिवार, 22 मार्च 2014

मशविरा दे रहे हैं -

फूलों की बस्ती में काँटों की महफ़िल 
हुस्न को इश्क़ का मशविरा दे रहे हैं -

फुटपाथ  हासिल  था  मरने से पहले 
बाद मरने  के  अब मकबरा दे रहे हैं -

खुदगर्ज   का   कैसा  अंदाज  आला
हुनरमंद  को  सिरफिरा  कह  रहे हैं -  

निकले  मोती  पलक  से मजबूर  हो
कैसे  नादार को मसखरा  कह रहे हैं -

बैठे  होने  को  नीलाम जिस छाँव में 
दर्दे -बाजार  को आसरा  कह  रहे हैं -

रौशनी में गवारा एक  कदम भी नहीं  
अंधेरों के  आशिक़ अप्सरा  कह रहे हैं -

                             उदय वीर सिंह 











गुरुवार, 20 मार्च 2014

आवाज दो














आवाज दो 
अगर देखी है तुमने भूख 
दर्द का बेगानापन 
यतीमी का दौर 
सभ्यता का सूनापन 
तो आवाज दो ....
मनुष्यों ही नहीं 
द्वीपों ,महाद्वीपों का बहरापन 
मनुष्यता का विस्थापन ,
विचारों का बौनापन 
तो आवाज दो .... 
सुना है 
काले गोरे का भेद 
संस्कृतियों का विद्वेष 
निम्न और उच्चता  का सन्देश 
तो आवाज दो ....
अफ्रीका क्या एशिया 
सोमालिया क्या इंडिया   
जीवन ज्वाल ,अस्तित्व मौन क्यों है 
आवाज दो ....
हवा विष दन्त सी 
तेजाबी धूप, घटाओं से अंगार 
पानी मवाद की मानिंद 
अभिशप्त बन गया है 
तो आवाज दो .....
बेबसी दैन्यता  के फैले हाथ 
मांगते ख़ुशी नहीं अपितु जीवन 
मौत भी परायी सी 
अगर इसी ग्रह के प्राणी  हैं
तो आवाज दो ....
सीमा सरहदों आस्था व्यवस्थाओं की 
कैद का कुचक्र कर रहा हो
नैशर्गिक न्याय का वध .
तो आवाज दो ....
आँखों से सुन्दर संसार 
स्वस्थ ,विकसित संसार की 
चाहत है ,
तो आवाज दो ....

                         ---  उदय वीर सिंह     







बुधवार, 19 मार्च 2014

धतूरे की टोकरी...

पीता  है   जिसका  दूध
उसे खूंटे से बांध  रखा है  
जो  काट खाता है बे-शर्त
 भय-मुक्त पाल  रखा है  -

बड़ा उदास लौटा है रोजगार
दफ्तर  से ,  बे- रोजगार     
बड़ी उम्मीद ले मंगल व्रत 
का    उपवास   रखा    है-

हर रोज  बांध  आती है 
पीपल से रक्षासूत्र के धागे 
हादसों  के  शहर  में  उसका
बेटा  प्रवास करता है-   

कितना नामाकूल है खुदगर्ज
शाजिसों  का आलिम 
एक स्त्री के लिए आग खंजर 
तेजाब सम्भाल रखा है -

लिखा   तो  है  दुकान   पर 
अनमोल  हीरों का व्यापारी,
धतूरे   की   टोकरी    पर  
रेशमी  रुमाल  डाल रखा है -


                     -    उदय वीर सिंह

रविवार, 16 मार्च 2014

....होली है ...

प्रिय ,देशवासियों ! होली की मंगल कामनाओं सहित, जीवन में प्रत्येक रंगों की अप्रतिम वर्षा का उनवान ,प्रतिदर्श बन जाये,.मेरी अरदास रब से ....होली है ...
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पयाम -ए- मोहब्बत होली है
निजाम-ए- मोहबात होली है

समझा प्यार के काबिल अगर
इनाम-ए- मोहब्बत होली है -

होते हैं मुख़्तसर फासले
दीवाना -ए- मोहब्बत होली है -

ले अमन का पैगाम कामिल
चिराग-ए- मोहब्बत होली है -

रंगों में इबादत खिदमत शरारत संग
जमाल-ए- मोहब्बत होली है -

रंगों ने जाति,धर्म फिरका पूछा नहीं
कमाल-ए- मोहब्बत होली है -

उदय वीर सिंह

रविवार, 9 मार्च 2014

" तनया ' से -

महिला दिवस पर मेरी पुस्तक " तनया ' से -
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धरती  और  आकाश  हैं  हमारी  बेटियां
पिछले जनम का ख्वाब हैं हमारी बेटियां- 
अनुत्तरित रहे हर दौर में पूछे गए कभी 
हर  प्रश्न  का  जबाब  हैं  हमारी बेटियां- 

दस्तकों के बाद भी, चौखटें बंद मिलती हैं 
ले  धोती  पांव  थाली  में  हमारी  बेटियां-
दर्द के गांव में जब स्नेह के पांव जलते हैं 
पीपल की  छाँव बनती हैं ,हमारी  बेटियां -

बज्राघात की पीड़ा जब अपनों से पायी है 
उस  वक्त की लुक़मान हैं हमारी बेटियां -
आग की  सेज सोयी हैं ,वनवास भी देखा
देश  धर्म  पर  कुर्बान  हैं  हमारी  बेटियां -

                                   - उदय वीर सिंह

शनिवार, 8 मार्च 2014

अबला नहीं ,शक्ति है

 नारी- सशक्तिकरण दिवस की पूर्व संध्या पर नारी संचेतना के भावों को 
बल मिले मेरी शुभकामनाएं ,उन्हें समस्त अवसर  व अधिकार प्रदत्त हों
 जिससे वो वंचित रही हैं |
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नारी  अबला  नहीं , शक्ति  है
पवन है फिजां में बिखर जाने दो -
किसी सल्तनत की बुनियाद होती है
आशियाने  में  ढल जाने दो -
माँ ,बहन ,बेटी का आकार लेती  है
वीरांगना को शिखर जाने दो -
मत सोच कही नारी कमतर है
मुक्त कर उसे उसकी डगर जाने दो -
धरती, गगन  ,पाताल की विजेता है-
उसे अब उसके स्वर गाने  दो -
संत्राश शाजिशों में उसने बहुत जीया
अवसाद के सागर से उबर जाने दो-
नारी दीपक है गहन  अंधेरों का
हटाओ नकाब उसे नजर आने दो -

                            -    उदय वीर सिंह


शुक्रवार, 7 मार्च 2014

अभिव्यक्ति का पर देना -

पीड़ा  के   कातर  पंछी  को 

अभिव्यक्ति  का  पर देना -

न्यून हो धरती का आलय 

 उसे  निखिल अम्बर देना- 


सत्य  -  धरातल   प्राचीरें

प्रायः  उग  जाती  हैं बहुत 

बने  पराधीनता  की कारा 

उससे  पहले  गह्वर देना -


किसी  हृदय   का  अमृत 

बन   उत्सर्जित   हो  विष 

वाहिकाओं  में  उतर चले 

विरोध निज में स्वर देना -


शिखा किसी कौटिल्य की 

खुली रहे आखिर कब तक ,

सृजन हेतु नीहितार्थ नींव 

मजबूत तराशे पत्थर देना-


प्रतिभा  की कोयल, ले आड़ 

विपन्नता आखिर रोये क्यों 

राग -  माधुरी  आकार    वरे 

कूकन  को  अपना  घर देना -

                                 - उदय वीर सिंह

रविवार, 2 मार्च 2014

कोई भामा शाह बन जाये ...

भामा शाह बन जाये ...
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लौट रैली से  
उसे होश आया है 
कल कबाब और शराब 
पाया था ,
अब सल्फास मांग रहा है  |
रिस रहा है जख्म 
टीस रहा है दर्द  
चिल्लाता है -
आखिर किस किस की 
जय बोलूं ..?
डेढ़ सौ रुपये में .. |
रोज बदल जाती है सभा 
पार्टी नयी,नया नारा ..
मैं नेता नहीं मजूर हूँ 
जबान  फिसल गयी , 
पार्टी इनकी, नारा उनका हो गया  |
मुए ठेकेदार ने मारा,
अपाहिज लाचार हो गया  |
पेट खाली
भूखे बच्चे ,बीमार बीबी ,
हस्र जनता हूँ जवान बेटी का  |
तंग आ गया हूँ 
गलीज जिंदगी से ...
कुटुंब संग उबरना 
चाहता हूँ
कोई तो भामा शाह बन जाये ,
मुझे कुछ 
दान 
देकर ...... |

             - उदय वीर सिंह 







शनिवार, 1 मार्च 2014

कर्जे उतार लो

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वक्त गुजरा वो आईना है
जुल्फें संवार लो - 

जो लगे हैं दाग चेहरे 
उनको उतार लो -

भर न पायी आँख जिनको
दिल में उसार लो - 

हक़ था जिनका दे न पाये
वो कर्जे उतार लो -

- उदय वीर सिंह