जब पर्वत पीर पिघलती है -
शब्द मूक विरमित होते
दुर्दिन की घटा जब घिरती है -
पावस - हीन सरिता उफनी
शिखर -संवेदन कहती है -
रिस रिस कर विप्लव आसव
विक्षोभ कलश को भरती है-
संशय का प्रतिनिधि दारुण
हिय कोष्ठ प्रबलता कूट भरे
आरत मन की भाव निराशा
विष बूँद- बूँद उर ढलती है-
पीत पात तरुवर तज जाते
हरित पात की छाँव भली
कोकिल कूक सदा मन मोदित
पग - पथिक पंथ को जीती है -
सत्य निषेचन ,प्रखर विवेचन
संवाद मौन का अभिनन्दन
अनावरण हो प्रज्ञा पट का
हो सेतु हृदय का संवेदन-
छूटे अनुबंध ,भरे न भरे पल
तमस गीत का लोपन हो
हँसी कुंज आलोक मुखर हो
हो मौन शिखा सादर जलती है-
- उदय वीर सिंह