शनिवार, 28 जून 2014

सिर झुकाएगा उदय


जख्म  बोयेगा अगर ,दर्द  काटेगा उदय
स्नेह  बांटेगा  अगर, नेह  पायेगा उदय-

कौन कहता है मोहब्बत की कमी है यहाँ ,
झुकेगी  दुनियां जो  सिर झुकाएगा उदय -

तख्तो ताजो सल्तनत ने निभाया किसको
रहेगा प्यार ज़माने में जो कमायेगा उदय-

रहेगी  महफूज दुआओं  में  तेरी दुनियाँ 
गिरे  हैं  राह अगर , उन्हें उठाएगा उदय -

                                  -   उदय वीर सिंह 






गुरुवार, 26 जून 2014

कोई ढल गया गीतों में

कोई  ढल गया गीतों में
कोई  बह गया गीतों  में -
जींद  दे  अफ़साने  सारे
कोई कह गया  गीतों में -

कुछ ने  पायी राहें  अपनी
कोई  खो   गया  गीतों  में -
कोई ख़ुशीयां के आँगन मेँ
कोई   रो   गया  गीतों   में -

तन्हाँ कितना सूना सूना
कोई  हो   गया  गीतों  में -
जागा  कोई  रात  उदासी
कोई  सो  गया  गीतों  में -

प्रीत  की   शीतल  पवन
कोई जल  गया गीतों में-
साजों की बन्दिशनवाजी
कोई मिल गया गीतों में -

                          उदय  वीर सिंह  
  

रविवार, 22 जून 2014

सपने देखने दो ...


अभी हम
ख्वाबों में हैं ....
देखना था, देख रहे हैं 
अभी देखेंगे ..
कल किसी और ने देखा 
आज हम ....
कितना अच्छा लगता है देखना 
सबको रोटी ,कपड़ा, मकान,
शिक्षा ,स्वास्थ्य , सम्मान,
अवसर , इंसाफ ....
शब्द नहीं हैं कहने को कम पड़ जाते हैं..
देखे सपने 
साकार करने हैं  |
ये आरोप गलत है कि
हम विकसित देशों कि श्रेणी में नहीं हैं |
हम हैं ....
हमारे सपने, आदर्श ,संस्कार 
उच्चतम हैं, विकसित हैं..... 
उन्हें साकार करना है |
समय लगता है...  
समय वांछित है ...समझ गए
या समझाये |
तुम भूखे नंगे क्या जानो
सोते जो नहीं हो .
हम राष्ट्र के लिए सोते हैं 
सपने देखते हैं |
सपने देखने दो 
सोने दो ......|
    
                    - उदय वीर सिंह  
 

 
   

   

बुधवार, 18 जून 2014

मौन प्रतिविम्ब है ..



सहारा  में  सावन बरसता नहीं क्यूँ
आँखों  में  आंसू ,ठहरता  नहीं क्यूं -

नीर  कितने जनम  से ,ढ़ोती नदी है
ये सागर भी न जाने भरता नहीं क्यूँ -

मौन प्रतिविम्ब है   कहता नहीं  क्यूं
झील ठहरी हुई नीर बहता नहीं क्यूं -

प्रीत की रीत में कोई ढलता नहीं क्यूं
दर्द के  गांव  में कोई बसता नहीं क्यूं -

पीर किश्तों  में बढ़कर  हिमालय हुई
ये पर्वत  न  जानें  पिघलता नहीं  क्यूँ -

                             - उदय वीर सिंह







सोमवार, 16 जून 2014

पिता [ the sky]


प्रेम का पगोढ़ा है                                

स्नेह की सांकल भी है-
धूप की  छाजन है 
आशीष का आँचल भी है -
आघातों का भंजक है 
संवेदनाओं का सम्बल भी है-
पीड़ा में प्रकाश पुंज है 
वेदनाओं का नाशक भी है -
डूबती निगाहों की ठौर 
सागर में  किश्ती 
आशाओं का आँगन भी है -
उँगलियों को आधार,
संस्कार को आकार देता 
पैरों का दिशा वाचक भी है -
जब भी आँखे नम हुईं
हाथ सिर पर पहले दिया 
देने को खुशियां स्नेह सारा 
वो देने वाला याचक भी है - 
सह लिया घावों को अपने 
रो लिया जब बोझिल हुआ 
न देख सका आंसू कभी  
कभी बसंत कभी सावन भी है- 
टुकड़ों में चाहे बँट गया 
हर आपदा से जूझता 
माँगा नहीं सिला कभी 
जीवन का अमृत आयन भी है -
जब लौट आती आश 
टकरा प्रस्तर भित्तियों से 
वात्सल्य की खुली बाहें लिए 
पिता संतान का शुभालय भी है-
आभार है आशीष है 
प्रबोध व प्रतिमान है 
कह सका न दर्द अपना 
त्याग ही प्रतिदान है -
सुखी रहो फूलो -फलो 
ये शब्द उच्चरित होते रहे 
संतान हित जिए मरे ये
एक  पिता का ख्याल भी है  -

                           - उदय वीर सिंह  


  



















शनिवार, 14 जून 2014

रब चाहता हूँ


अदब  में  रहा  हूँ, अदब  चाहता हूँ
रौशन  हों आँखें , मैं  रब चाहता हूँ -

मुबारक तुम्हें हो गुलाबों की दुनियां
काँटों का  गुलशन मैं कब चाहता हूँ-

तू  अमानत  दुआ-ए- दिलों की रहे
सदाये  मोहब्बत  बाअदब चाहता हूँ-


पैगामे - उल्फत पढ़ें  साथ मिलकर    
राहे - रहगुजर,  हमसफ़र चाहता हूँ  -

                        -  उदय वीर सिंह 
    







बुधवार, 11 जून 2014

इंसान हमवतन हैं -



हर पथ  में हैं सवाल, पर जबाब भी भरे हैं 
दरख्तों  को  देख कैसे, आँधियों में खड़े हैं -

बुझाने की कोशिशों में मशगूल रहा रकीब, 
चिराग हौसलों  के , हर  तूफान में जले हैं -

कायम हैं वो निशान , जो वापस न हो सके 
वो मुकाम दे गए ,जहाँ से आज हम चले हैं-

एक सवाल के बहाने ,तेरा साथ चाहिए था 
लहू का रंग एक  है, एक इंसान हमवतन हैं -

                                        -  उदय वीर सिंह 









सोमवार, 9 जून 2014

दस ... तक [THE FEAR]



दस ... तक [THE FEAR]

.....  दस्तक सुन कर यशोदा देवी ने यह सोच कर की शायद बेटा कुंदन दवा लेकर आया है ,दरवाजा खोलने को आगे बढ़ी | दरवाजे पर लगातार दस्तक हो रही थी |
  अरे ! बाबा खोल रही हूँ ,यशोदा देवी ने ऊँची आवाज में कहा |
 दरवाजा खोला तो पाया की सामने पुलिस के तीन चार जवान बड़ी मुस्तैदी से हथियार सम्हाले आक्रामक मुद्रा में खड़े हैं | बाहर धुंधली सी स्ट्रीट लाईट जल रही हैं कुछ लोग दूर से अपने घरों से, आई पुलिस को देख रहे हैं  |         क्या बात है साहब जी ! आप लोग मेरे घर इतनी रात गए | क्या गुनाह हो गया हमसे ? आशंका भरे मन से कई सवाल मुंह से अनायास निकल गए |
     चुप बुढ़िया ! बकवास बंद कर तेरे घर की  तलाशी  लेनी है |  और कौन-कौन है तेरे घर में ? एक पुलिस के जवान ने डाँटते हुए पूछा |
 शेष जवान भी घर में दाखिल हो इधर-उधर देखने  सामान इधर उधर फेंकने ,उलटने- पलटने लगे |
   मैं हूँ साहब ,मेरी बेटी जो बीमार है ,उसकी दवा लेने मेरा बेटा कुंदन शहर गया है आता ही होगा  हम उसी की राह देख रहे हैं | हमें लगा की वही आया है |
यशोदा देवी ने बताया |
   क्या हुआ अम्मा ? शोर - गुल सुन बेटी प्रतिमा
छत से नीचे आई |
किसको तलाश रहे हैं आप लोग ? प्रतिमा ने पूछा .
 चुप रह छोकरी ! तेरा आतंकवादी भाई कहाँ है ?
दवा लेने गया है साहब मैंने बताया तो आपको , बीच में टोक कर माँ यशोदा देवी ने बताया |
  बुढ़िया ! सच सच बता वरना तेरी खैर नहीं और तेरी इस छोरी का वो हाल करेंगे की ये कई जनम भूल न पायेगी .
    ना साहब ! ऐसा न करना , हम लोगों ने कोई गुनाह नहीं किया है ,हमारा किसी से कोई दुश्मनी या ताल्लुक नहीं है हमारे पति एक ईमानदार शिक्षक थे ,उनके स्वर्गवास के बाद  उनकी पेंसन से हमारा बसर होता है साहब ! बेटी प्राइवेट स्कुल में पढ़ाती है ,बेटा कामर्स के दूसरे साल में है ,कभी किसी से उची आवाज में वो बात नहीं करता है | यकीन करो साहब! आप को कोई गलतफहमी हुई है | यशोदा देवी पैर पकड़ गिड़गिड़ाते हुए कहा |
     बुढ़िया ज्यादा चालाकी ना दिखा ,तेरा बेटा आज शहर में हुए बम विस्फोट के आरोपियों के साथ सी सी कैमरे में देखा गया है | और तूं अपने को हरिश्चंद्र की औलाद बता रही है ,गर्दन पकड़ झंझोड़ते हुए जवान ने कहा |
   सर ! और कुछ नहीं मिला ,इसे छोडो लड़की को ले चलो ,जब दस जवान इस लड़की की मालिस करेंगे ये अपने आप सब बता देंगे | दूसरे जवान ने बेटी प्रतिमा को काबू करते हुए बोला |
 पुलिस के जवान ,प्रतिमा को ले मां यशोदा को बिलखता छोड़ चले गए | माँ चिल्लाती रही लोग तमाशबीन बने रहे ,यशोदा की चिल्लाहट व रुदन से काफी देर बाद मोहल्ले वाले इकठे हुए ,आपस में कानाफूसी कर रहे  थे |
     कोई कह रहा था टीवी पर खबर मैंने देखी है, मेडिकल स्टोर के सीसी कैमरे में कुंदन भी दिख रहा था संदिग्ध आतंकवादियों के साथ में , जो एक मेडिकल स्टोर से कुछ लोगों के साथ अपनी साईकल में कुछ सामान लिए निकल रहा है ,क्या पता कुछ भी संभव है  साईकल जो विस्फोट स्थल से मिली है वह कुंदन की बताई जा रही है | क्या कहा जाये ,वैसे कुंदन से यह आशा नहीं की जा सकती |
अरे किसी के दिल में क्या है कौन जनता है ? एक अन्य व्यक्ति का कहना था | कुछ एक पडोसी साथ रह गए ,शेष पल्ला झाड़ निकल लिए |
एक माँ दिल पर पत्थर रख सब सहन करती रही, सुनती रही अपने बच्चे की, अपनी तईं तलाश करती रही सहायता के लिए जहाँ- जहाँ जा सकती थी गयी | पर सहायता संवेदना की जगह मायूसी ही मिली |
        एक प्यारा एकलौता होनहार बेटा आतंकी घोषित हो गया | बेटी दरिंदों के हाथ बंधक किस हाल में होगी सोचकर हृदय काँप उठता | दो दिन हो गए एक अन्न का टुकड़ा भी मुंह में नहीं गया | कुछ सगे सम्बन्धी आये जितना प्रयास कर सकते थे किये |
     करीब रात के नौ बजने वाले है, आसमान में आवारा बादलों की आमद के साथ नमीं है ,बूंदा बंदी की भी संभावना है रह - रह कर विजली भी अपना रौद्र रूप दिखा जा रही है ,सड़क पर आवाजाही भी कम है कुंदन लंगड़ाते हुए अचानक घर में दाखिल हुआ ,पैर में पट्टी बंधी है |      तूं कहाँ था !  कुंदन को  देख मां धाह मार कर रो पड़ी |      कुछ मत पूछ माँ ! अब ठीक हूँ ,एक भलेमानस पुलिस वाले की सहायता से उसकी मोटर-सायकिल पर घर पहुंचा हूँ ,बड़ा नेकदिल इंसान था माँ कुंदन बोला |
     मैं मेडिकल स्टोर से दवा ले रहा था , तीन चार लोग थे कुछ दवा खरीद, वो मेरे साथ हो लिए उनके साथ कुछ सामान था ,वे मेरी साईकिल पर रख बात- चित करते निकले ,सड़क पर रोशनी नहीं थी आती जाती गाड़ियों की रोशनी ही रास्ता दिखाती, मुझे लगा की वो मेरे शहर अकबरपुर से परिचित नहीं हैं ,मैंने उन्हें रास्ता बताया   एक ने मेरी साईकिल अपने हाथ में ली और थोड़ा आगे निकल गया | मुझे कुछ असामान्य नहीं लगा |
  मैंने कहा मुझे इधर जाना है, विष्णु मंदिर और मेन मार्किट आगे है ,अब साईकिल मुझे दे दें मुझे घर पहुँचाने में देर होगी |
       चलना हो तो साथ चलिए वरना आप जाएँ साईकल हम भेज देंगे | एक सभ्य सा दिखता आदमी बोला |  अचानक मेरे पैर में कुछ लगा मैं गिर पड़ा ,दर्द और खून से मैं बिलबिला गया ,किस ने मुझे अस्पताल पहुँचाया पता नहीं , पैर में गोली छीलते हुए निकल गयी थी |आराम मिलते मैं घर पहुंचा  हूँ मुझे आप की प्रतिमा दी की चिंता थी आप लोग परेशान होगे |दवा साईकल में रह गयी ,फोन भी कहीं गिर गया |
 बेटे ! पुलिस वाले उसी दिन देर रात घर आये तुम्हें ढूंढते तुम्हें ना पा तेरी बहन को उठा ले गए हैं  | किस हाल में होगी मेरी बेटी ,उनका इरादा अच्छा नहीं लगा मां ने रोते हुए बताया |  
मैं देखता हूँ माँ ,मुझे एक गिलास पानी दे ,भूख भी है क्या -क्या दिन देखने होंगे ,मायूस आवाज में कुंदन
बोला |  
   दस्तक दर दस्तक दरवाजे पर होने लगी थी |
मैं देखती हूँ कुंदन ! एक हाथ में पानी का गिलास लिए दूसरे से दरवाजा खोला ,देखा तो सामने पुलिस  बिना पूछे धक्का देते हुए पुलिस के जवान अंदर आ गए |
कहाँ छुपा रखा है अपने आतंकवादी बेटे को ? कड़क आवाज में एक ने इधर- उधर देख पूछा ।शेष अन्य कमरों में चले गए ।
मेरा बेटा आतंकवादी नहीं है, ये यहीं बैठा है अभी अभी आया  है ,घायल है आतंकवादियों ने इसे गोली मारी इसकी साईकल ले चले गए ,इसे मरने को छोड़ | और अब तुम सब इसके पीछे पड़े हो, दयावान की जगह शैतान बनकर ।
मेरी बेटी कहाँ है ? अरे तुम लोग भी तो बेटे -बेटी वाले हो ? क्या तुम लोगों का दिल नहीं पसीजता ? न्याय क्यों नहीं करते ?
चुप बुढ़िया ! हमें अपना काम करने दो । वर्दीधारी की रौबदार आवाज गूंजी ।  
अगर मेरे बच्चों को कुछ हो गया तो मैं जान दे दूंगी  |ईश्वर तुम लोगों को कभी माफ़ नहीं करेगा । यशोदा देवी का करुण क्रंदन गूंज उठा ।
हवलदार इसे हथियार की पहचान कराओ ! वर्दीधारियों में से एक ने कहा ।
पहचान ये क्या है ? एक ने अपनी पिस्तौल कुंदन के हाथ देते हुए कहा।
सर ! ये हम ले कर क्या करेंगे कुंदन घबराया हुआ बोला ।
ले पकड़ इसे ! गोली तो तूं चलना जानता है ना ?
नहीं सर ! कुंदन ने भोलेपन से जबाब दिया ।
तो तूं निर्दोष बचना चाहता है ? वर्दीधारियों में से एक ने कहा ।
मैंने कुछ नहीं किया है सर ! कुंदन ने कहा। तब मैं दस तक गिनती गिनूंगा  ,तूं मेरे सामने से जहाँ चाहता है भाग जा ..... पीछे मुड़ कर देखना भी नहीं ।
माँ -बेटे आवाक थे |
  साहब ! कहीं मत भेजो मेरे बेटे को ,देखो एक गिलास पानी भी नहीं पी पाया है .इसने कोई अपराध नहीं किया है ।
 इसी लिए तो कहा रहा हूँ ,बचना चाहता है तो भाग जा पुलिस वाले साहब ने कहा ।
कुंदन, मां की तरफ डबडबायी आँखों देखा ,अभी मां के हाथों से पानी का गिलास भी नहीं पी पाया था |
साहब कह रहे हैं तो बेटा चला जा , प्रतिमा भी आ जाएगी ,तूं चिंता ना कर | माँ की ममता ने किसी रहस्य को दरकिनार कर दिया |
कुंदन भारी मन से साहब के निर्देश पर ना चाहते हुए भी जाने को विवस था |,माँ और बहन का जीवन जेहन में कौंध रहा था ।
हाथ में पिस्तौल लिए लड़खड़ाता घर से बाहर भागने लगा ,अभी नौ तक गिनती पूरी नहीं हुई थी ,पुलिस के दूसरे जवान ने गोली दाग दी |  
   दस मिनट के भीतर शहर के हुक्मरानों व प्रिंट मिडिया, इलेक्ट्रानिक मिडिया के सम्बाददाताओं का हुजूम इज्जतनगर मोहल्ले में उमड़ आया ,आतंकवादी की लाश को कैमरों में कैद किया जा रहा था |
न्यूज चैनलों पर निरंतर खबर प्रसारित हो रही थी ,अकबरपुर बम ब्लास्ट का आरोपी एक खूंखार आतंकवादी मुठभेड़ में मारा गया | उसके शेष साथियों की सरगर्मी से तलाश जारी है ,खबर है की मारे गए आतंकी की बहन भी आतंकवाद से जुडी हुई है ,जिसका अभी कोई सुराग नहीं मिला है |  
   न्याय व विश्लेषण की त्वरित गति का नायाब नमूना | जय किसकी पराजय किसकी एक अबूझ पहेली बन कर रह गयी है |

उदय वीर सिंह


बुधवार, 4 जून 2014

हकीकत या ख्वाब कहूँ


इसे शराब कहूँ या शबाब कहूँ
उगता नहीं जहाँ उस महफ़िल का
इसे आफ़ताब कहूँ.....

न पायी है कोई तंजीम या अदीबी दुनियां
जिंद के हर  सवालों का
इसे जबाब कहूँ .....

किस ओर जाएगी नागिन सी मचलती ये नदी
इसे मनसबदार-ए-हकीकत
या  एक ख्वाब कहूँ -

                         -  उदय वीर सिंह

मंगलवार, 3 जून 2014

बयान [स्टेटमेंट ]


    बयान [स्टेटमेंट ] 
                                            {एक लघु कथा }
उसे अंदर ले चलो ,स्टेटमेंट लेना होगा | महिला जज ने अर्दली प्रेम सिंह  को निर्देश दिया |
 चलो जी अंदर | अर्दली ने बाला को इशारे  से कहा |
अब अंदर सोफे पर जज साहिबा विराजमान थीं ,सामने पीड़िता | आरम्भ होता है बयान [स्टेटमेंट ]का सिलसिला |
 आप भी तो एक औरत हो मैडम जी ! आप कैसे मेरा स्टेमेंट [स्टेटमेंट ] लोगे  ? गांव से आई दुष्कर्म की शिकार बाला- {लालपरी} ने सिर के आँचल को सम्हालते हुए  महिला जज से नीर बहती आँखों, जज साहिबा के प्रश्न से पहले अपना शंसय भरा प्रश्न किया था |
 मैं समझी नहीं ? दस्तावेजों के मुताबिक तुम्हारा नाम लालपरी है न ? जज साहिबा ने चश्में को उतारते हुए  तिरछे देखते पूछा |
  जी ! मैडम मेरा नाम लालपरी  बापू का नाम भरत साह ,साकिम -खारगुन, तहसील - बेणी  थाना - मौना ,जिला-महबूब नगर | एक साँस में बोल गयी |
    हाँ सो तो ठीक है ,ये  सब दस्तावेजों में है | तूने कहा मैं भी औरत हूँ  इस लिए स्टेटमेंट नहीं ले सकती  जज साहिबा ने पुनः दोहराया |
 जी.. जी .. मैडम ! मुझे नहीं मालूम आप भी ..| हताश डरी लालपरी ने कहा |
लालपरी  ! डरो नहीं अपना बयान कलमवद्ध कराओ .स्टेटमेंट दो , हम तुम्हारे साथ हैं जज साहिबा ने
 रहस्यमयी स्थिति को कुछ समझते हुए कहा |
 मैडम बयान भी ले लो  स्टेमेंट  भी ले  लो |  पर अब  मैं स्टेमेंट देने लायक  नहीं  हूँ  सबने  लिया  स्टेमेंट  किसी  ने  नहीं  छोड़ा  जानवर  बन  गए  एक  मजबूर इंसान  के साथ, जांच के नाम  पर,  मुझे  निआउ  [इंसाफ  ] देने  के  नाम  पर  |
     मुझे  अब  जहर  दे  दो ,फांसी  दे  दो ,अब मत लो स्टेमेंट | अब  नहीं  जीना चाहती | तुम नहीं समझ  सकते  की  मेरे  माँ -बापू पर क्या  बीतती होगी ,मुझ पर क्या बीतती  है |
बापू रोता है कहता है- अब कौन थामेगा मेरी लालपरी का हाथ | ये लगा कलंक कहाँ मिटेगा अब   ...बिलबिला  उठी  थी  मेज  पर  सिर  रख  कर  लालपरी |
    जज  साहिबा  ने सम्हालते हुए एक गिलास पानी  अपने हाथों दे सच बताने का आग्रह किया  |
    मैडम  जी  ! मेरे  बापू  ने  माँ  की  दवाई  के  लिए गांव के ही हरी चंद से ब्याज पर पैसे लिए जो अभी चुकता नहीं हो सका   है | आठ हजार चुकता  करने के बाद भी उसका चार हजार ,चार साल में सोलह हजार हो गया
 | रोज पैसों के लिए  धमकाता  था | एक  दिन  माँ - बापू  खेत  में  थे ,शैतान ने मुझे अकेला देख मेरे साथ बुरा काम  किया और कहीं कहने पर मुझे व मेरे माँ- बापू को जान से मार देने की धमकी दे गया   |
   माँ के घर आने पर मैंने माँ से सारी आप बीती बताई | माँ  सन्न  रह  गयी |  माँ  ने  बापू  को मेरी दास्तान बताई   | मुझे ले माँ- बापू  सरपंच  के  पास  गए  |
  जाँच और स्टेमेंट  [बयान ]जरुरी  है, कह उसने अकेले एक कमरे में  लेजा स्टेमेंट लिया | थाने  पर वह हम लोगों को साथ ले गया,वहां  मुंशी , दिवान से सरपंच ने कुछ बात किया और चला आया | थाने में मुंशी, दिवान व दरोगा ने  स्टेमेंट लिया, तमाम शर्मनाक सवाल- जबाब करते रहे,  इसे जाँच व कार्यवाही समझ हम चुप-चाप  इसे सहते रहे ,की  न्याय  मिलेगा ,दोषी को सजा मिलेगी |
     हद तब  हो गयी अस्पताल  गए  वहां  भी कम्पाउण्डर  व  डाक्टर  ने स्टेमेंट लिया | कैसे - कैसे जाँच किया  बताना मुश्किल ।
   हम क्या करें कहाँ जाये | जो काम उस सूदखोर ने किया वही स्टेमेंट के नाम पर सभी ने किया  ... | मैडम अब मेरी शरीर और आत्मा साथ नहीं देते  .. .फफक कर रो पड़ी थी बाला लालपरी |
   बाहर मौसम में नमीं थी बादल घिरे हुए थे कब  बरस जायेगें कहा नहीं जा सकता  |,
जज साहिबा के पेशानी पर बल थे |
    प्रेम सिंह  ! . .. मैडम ने अर्दली  प्रेमसिंह  को  आवाज  दी  |
 जी हुजूर  !  प्रेम सिंह अंदर दाखिल  हुआ
बाहर बैठे  इनके माता-पिता  को अंदर बुलाओ |
  जी अच्छा | प्रेम सिंह बाहर चला  गया  |
 अंदर  मुंसफ  गंभीर मुद्रा में  और फरियादी  हाथ जोड़े एक दूसरे को आशा भरी निगाह से देख रहे थे  सभी चुप थे | मौन बोल रहा था | शायद अब आगे  बयान  या  ...की आवश्यकता नहीं थी  |
 बाहर निकल लालपरी माँ से लिपट रो पड़ी थी |
माँ जन्मते ही तूने मुझे संखिया  [जहर ] दे  दिया होता ,ये दिन न देखने पड़ते,तू  कहती हैं  न  कि गरीब मजलूम की बेटी का कोई सगा नहीं  .....|
 अब कौन किसको क्या देगा शायद तारीखें  बताएंगी  ,दो दिन बाद अखबारों में खबर थी  बेटी  संग  माँ -बाप गंग-नहर  में डूब मरे, अभी तक कारण पता नहीं चल सका  है |

                       -  उदय वीर सिंह





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रविवार, 1 जून 2014

गुरु अर्जन देव जी [शहीदी दिवस]

          हर जर्रे में तेरा नूर है कुर्बानियों का 
            तेरे वारिस हर जर्रे को सलाम करते हैं -

सिख पंथ के पांचवें गुरु अर्जन देव जी महाराज के महान शहीदी दिवस  पर अश्रुपूरित नेत्रों से भावभीनी श्रद्धांजलि | इस वलिदान दिवस पर शहीदी प्रथा के हम वारिस शुचिता संकल्प  के साथ अपने पूर्वजों के दिखाए पथ पर अडिग ,अखंड ,अहर्निश गतिमान रहेंगे, के व्रत-शपथ  को पुनः दुहराते हैं  |
          जो तो प्रेम खेलें का चाओ
          सिर धर तली गली मेरे आओ -
          जे मारग पैर धरीजै
          शीश दीजै कान्ह न कीजै -
की परंपरा से अभिभूत हम आप जी के वलिदान को सृष्टि के हर जन्मों में शुमार करते रहेंगे | जोर-जुल्म के विरुद्ध मानवता के रक्षार्थ अपना उच्चतम शौर्य, सर्वस्व न्योछावर करने की शपथ को अक्षुण रखेंगे |
       गुरु अर्जन देव जी का  जन्म श्री गोविंदवाल साहिब  में १५ अप्रैल १५६३ को माता भानी जी व गुरु रामदास जी महाराज के  घर हुआ |गुरु -गद्दी १८ वर्ष की आयु में  प्राप्त हुयी | फारसी, अरबी , संस्कृत गुरुमुखी के प्रकांड विद्वान गुरु सिखी प्रथा के पांचवें पातसाह  नवाज़े  गए | गुरु ग्रन्थ साहिब जी  के स्वर -स्वरुप को, अक्षर- स्वरुप में क्रमवद्ध कर प्रथम ग्रन्थी बाबा बुडढा  सिंह जी को नियुक्त करना , हरमंदिर साहिब की स्थापना, पवित्र सरोवर का निर्माण , तरन- तारण एवं कई अन्य शहरों का  निर्माण गुरु महाराज के  द्वारा किये गए | 
     गुरुमत प्रचार अपने सुसंगत आयामों से अपने विस्तार को परवान चढ़ाया , धर्म और  देश -प्रेम का सकारात्मक बोध ,अपनी संस्कृति का शिखर व सुखद पक्ष संयोजनात्मक रूप से प्रदर्शित व प्रतिष्ठित किया 
 परिणाम स्वरुप सिख- स्वरुप एक नए धर्म का रूप धारण करता है | 
     1606  मे अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर सत्ता नशीं  होता है, फिर हिन्दू व मुसलमान कट्टरपंथी फिर सिख पंथ के बिरुद्ध सक्रिय हो षडयंत्र रचते हैं, जिसमें बीरबल ,शेख सरहिंदी आदि प्रमुख रहे |  विद्रोही शहजादा खुशरो को शरण देने का इल्जाम गुरु महाराज के ऊपर  गया ,जब की वास्तविकता यह रही है की समस्त सत्तानशीं गुरु घर का  आदर व दर्शन  रहे | 
    जहांगीर को अपने व सिपहसालारों के तजवीज से लगा की पांचवें सिख गुरु उसके लिए खतरा हैं ,स्वयं रूचि ले गिरफ्तार करवा उन्हें इस्लाम  ग्रहण करने व अपनी  धार्मिक मुहीम बंद करने का फरमान जारी किया ,जो गुरु महाराज के लिए मानना नामुमकिन था परिणाम मालूम था सजाये- मौत |
    सजा  भी ऐसी की रूह  कांप  जाये , लाल गर्म  लोहे के तवे पर बैठाया गया , ऊपर से  जलती रेत शरीर पर 
डाली गयी ,फिर भी  ईर्ष्या ,अहंकार शांत  नहीं हुआ तो लोहे की सांकल में  बांध 30  मई 1606 को   दरिया रावी  में डुबोया गया | तफसील से जहाँगीर अपनी आत्म -कथा में इस घटना का बयान भी दर्ज किया है |
    इस तरह शहादत की परंपरा  जोर -जुल्म के  खिलाफ कायम रही | उनकी विरासत के हम वारिस इस महान परंपरा को सर आँखों पर उठाये गर्व करते हैं , नमन करते हैं उनके शौर्य साहस और वलिदान को -
                   तुम्हारे फलसफ़े हमारी इबादत हैं 
                         हम जिन्दा हैं तेरी कुर्बानियों से -
  
                                                                                                 -    उदय वीर सिंह