बासिन्दा पतझड़ का
मधुबन के गीत कहाँ लिखता -
जो चाँद के गाँव में रहता है
सूरज को मीत कहाँ लिखता -
दिल रूठ गया हो अपनों से
झूठी प्रीत कहाँ लिखता -
जब सूख गया आँखों का पानी
फिर निर्झर नेह कहाँ बहता -
विष नद- नाले बहुत मिले,
पीयूष का घूंट कहाँ मिलता -
वैराग्य द्वेष का अवगाहन
सच्चा मनमीत कहाँ मिलता -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
मन की स्वच्छता एवं सच्चाई झलक रही है.
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