मुझे कहना , नहीं आता -
वो सागर, मैं हिमालय की ओर
दरिया संग बहना नहीं आता -
परेशां हूँ दो रोटियों के बाबत
मैखाना कहता है मिलने नहीं आता -
इंसानियत के सवाल पर पाता हूँ
मुझे बदलना नहीं आता -
खुश हूँ तेरी महफिल को ठुकरा कर
शहादत पर हँसना नहीं आता-
शराब नहीं मैं आदमी हूँ
पैमानों में ढलना नहीं आता
वो सागर, मैं हिमालय की ओर
दरिया संग बहना नहीं आता -
परेशां हूँ दो रोटियों के बाबत
मैखाना कहता है मिलने नहीं आता -
इंसानियत के सवाल पर पाता हूँ
मुझे बदलना नहीं आता -
खुश हूँ तेरी महफिल को ठुकरा कर
शहादत पर हँसना नहीं आता-
शराब नहीं मैं आदमी हूँ
पैमानों में ढलना नहीं आता
उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
सार्थक प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (16-02-2015) को "बम भोले के गूँजे नाद" (चर्चा अंक-1891) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब।
वाह उदय वीर जी! गज़ब की शायरी !
________________________
इतनी गहराई शायरी में कि डूब गया।
अच्छा है मुझे तैरना नहीं आता।
वाह उदय वीर जी! गज़ब की शायरी !
________________________
इतनी गहराई शायरी में कि डूब गया।
अच्छा है मुझे तैरना नहीं आता।
एक टिप्पणी भेजें