शुक्रवार, 13 मार्च 2015

कब उत्थान संभव है ....

'मंगल प्रभात मित्रों !
बयान दर्ज है - [नशा दुर्भाग्य को अनुमोदित करता है ] 
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बस सपनों के गांवों में ,कब सिंहासन संभव है 
सोकर वैभव की यादों में, कब उत्थान संभव है 
स्वाद रसीले जिह्वा कब बिन भोजन संभव है 
मयंक मशाल के जलने से कब विहान संभव है -

उदय वीर सिंह'
बस सपनों के गांवों में ,कब सिंहासन संभव है
सोकर वैभव की यादों में, कब उत्थान संभव है 
स्वाद रसीले जिह्वा कब बिन भोजन संभव है
मयंक मशाल के जलने से कब विहान संभव है -

उदय वीर सिंह


1 टिप्पणी:

कहकशां खान ने कहा…

बहुत ही सुंदर प्रस्‍तुति।