मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

बैसाखी एक हस्ताक्षर

 समस्त देश वासियों को बैसाखी की लख -लख बधाइयाँ.....
          आएंगे गम हजारों एहतराम करते हैं,
          हो जाएंगे रुखसत बैसाखी की आंधियों में -


          " बैसाखी एक हस्ताक्षर इतिहास का, बर्तमान का, भविष्य की जिवंतता का मानद स्वरूप "

भौगोलिक रूप से भारतीय प्रायद्वीप के उत्तरी खंड में नयी फसल कणक [गेहूं ] का पककर तैयार हो जाना ,जो मुख्य भोज्य- स्रोत ही नहीं आय का मुख्य साधन भी है । इससे किसान की तमाम उम्मीदें आस बंधी होती हैं। पढ़ाई ,कुड़माई, दवाई ,घर की मरम्मत,गहने, कपड़े की खरीददारी गुरुद्वारों- मंदिरों के दर्शन ,लिए गए कर्जों की चुकाई आदि दायित्वों के साथ हसरतों का स्रोत बैसाखी । कितना अच्छा लगता है उसका आगमन ,कितनी प्रतीक्षा रहती है इस पर्व की ।जो निरंतर प्राचीनता को समेटे वर्तमान का सुमंगल गान करती है ।अर्थतःसमस्त यक्ष प्रश्नों का निरापद उत्तर बनकर प्रतिनिध्त्व प्रदान करती हुई । बैसाखी की एतिहासिकता समग्र रूप में एक अशेष आत्मविस्वास का विमोचन है । जिसने आत्मबल ही नहीं सर्व- बल समर्थता को रेखांकित किया है ।
खालसा पंथ की साजना - आज के ही दिन सिक्खों के दसवे गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज ने जुल्म, जबर, आतंक अन्याय के विरुद्ध मानव मात्र को सहेजा, खालसा पंथ को आत्मबल के साथ अमृत-शपथ का कठोर अनुशासन व जीवन का अप्रतिम प्रस्तर- कलेवर दे ,समस्त अंधविस्वासों को दफन कर, किसी भी भेद को अमान्य करार दिया -
'मानुख की जात सब एकै पछानिबों '
का सूत्र वाक्य ही नहीं दिया वरन व्यवहार में प्रतिवद्धता के साथ अपनाया भी । यही अकाल पुरुख की फौज कहलाई जिसने हिदुस्तान की दशा और दिशा को निर्धारित किया ,जिसके आज हम बेदाग गौरवशाली वारिस हैं । जिसकी आत्मीय दिगंतता व स्वीकार्यता वैश्वीक हुई । लोकतन्त्र की व्यवस्था को विश्व मंच पर स्थापित किया - 
   " वाहो वाहो गोबिन्द सिंह जी आपे गुरु चेला " 
सर्वप्रथम न्याय व निर्णय को पंचायती व्यवस्था का रूप प्रदान किया । जो अद्वितीय है । 
पुण्य बैसाखी के प्रताप को साक्ष्य मान फिरंगी शासन के विरुद्ध एका हेतु आहूत जनसभा अमृतशहर [ जालियाँवाला बाग ] मे उपस्थित निहत्थे जनसमूह के दमनार्थ सभी आवागमन के मार्गों को बंद कर बंदूक की गोलियों से अंग्रेजों द्वारा भून दिया गया ,जिसमें बृद्ध है नहीं महिलाए व अबोध बच्चे भी शामिल थे । यह वेदना का दंश भी हमारे साथ है । 
मुसलमानी शासन में भी बैसाखी को सर्व-समन्वय तिथि मान इसे कई बार निषिद्ध घोषित किया गया । भारतीय संस्कृति के उन्मूलनर्थ अनेकानेक प्रयत्न किए गए । परंतु आज भी बैसाखी धन -धान्य खुशहाली का स्वरूप ले हमारे हृदय व घरों में आती है ,हमारी दिशा व दशा परिवर्तित करने । बैसाखी के दामन में कहीं गम है ,तो साथ ही गम को तिरोहित करने का आत्मबल भी है ,अपार खुशियाँ भी हैं ,गुरुओं का दिया सुख का अनंत भंडार भी है । 
                अमर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि के साथ बैसाखी की लख -लख बधाइयाँ ........
जो तो प्रेम खेलन का चाओ ,सिर धर तली गली मेरे आओ ।
" जेह मारग पैर धरीजै,शीश दिजै कान्ह न कीजै "
उदय वीर सिंह

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