गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

कणक के दानों की जगह ....

खेतों में अपनी बर्बादियों का मंजर देखा 
बड़ी गमगीन नजरों से लुटा हुआ मुकद्दर देखा -

बडी हसरतों से ख्वाबों की नेक फसल बोया 
कणक के दानों की जगह नामुराद पत्थर देखा -

याद आया बैंक का कर्ज,पढ़ाई बेटी की कुड़माई 
जेहन में मौत का फासला मुख्तसर देखा -

कितना यतीम वना गए पानी के सफ़ेद गोले 
सूनी निगाहों से रब कभी घर को भर नजर देखा-

हर दरो-दीवार की सरगोशियों में मसर्रत थी 
कल तक तामिरे ताज ,आज खंडहर देखा -

उदय वीर सिंह 

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