उन्नयन (UNNAYANA)
गुरुवार, 30 अप्रैल 2015
सींचता कोई -
उजाड़ेलाख गुलशन को
सींचता कोई -
फूल खिलते हैं बहुत
महकता कोई -
प्रीत की रीत तो देखो
हँसता है रोता कोई -
दात कैसी निराली है
काटता है बोता कोई -
घुमड़ते घन हजारों हैं
बरसता कोई -
किसी के पास खजाना है
तरसता कोई -
हंजू मौन हो बहते
उदय समझता कोई -
उदय वीर सिंह
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