चाहता हूँ तुम्हें अपनी तकदीर बना लूँ
एक मुसव्विर तरह, तस्वीर बना लूँ -
झील आँखों में ,चाँद किश्ती सा लगे
फलसफ़ा ए-जिंदगी में नजीर बना लूँ -
न होगा तुमसा तेरे किरदार में कोई
मुनासिब होगा की तुम्हें जमीर बना लूँ -
अच्छा हो की इल्तजा को गुनाहों में लिखो
सजा में तुमको अपना पीर बना लूँ -
रिआया हूँ तुम्हारी मैं वफाओं का
चाहता हूँ तेरी यादों को जागीर बना लूँ ...
उदय वीर सिंह
एक मुसव्विर तरह, तस्वीर बना लूँ -
झील आँखों में ,चाँद किश्ती सा लगे
फलसफ़ा ए-जिंदगी में नजीर बना लूँ -
न होगा तुमसा तेरे किरदार में कोई
मुनासिब होगा की तुम्हें जमीर बना लूँ -
अच्छा हो की इल्तजा को गुनाहों में लिखो
सजा में तुमको अपना पीर बना लूँ -
रिआया हूँ तुम्हारी मैं वफाओं का
चाहता हूँ तेरी यादों को जागीर बना लूँ ...
उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-05-2015) को "झुकी पलकें...हिन्दी-चीनी भाई-भाई" {चर्चा अंक - 1977} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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'yadon ki jagir".. sundr kavita
बहुत सुन्दर रचना
sundar prastuti ...
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