शुक्रवार, 15 मई 2015

यादों को जागीर बना लूँ ...

चाहता हूँ तुम्हें अपनी तकदीर बना लूँ 
एक मुसव्विर तरह, तस्वीर बना लूँ -

झील आँखों में ,चाँद किश्ती सा लगे 
फलसफ़ा ए-जिंदगी में नजीर बना लूँ -

न होगा तुमसा तेरे किरदार में कोई 
मुनासिब होगा की तुम्हें जमीर बना लूँ -

अच्छा हो की इल्तजा को गुनाहों में लिखो 
सजा में तुमको अपना पीर बना लूँ -

रिआया हूँ तुम्हारी मैं वफाओं का 
चाहता हूँ तेरी यादों को जागीर बना लूँ ...

उदय वीर सिंह 

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-05-2015) को "झुकी पलकें...हिन्दी-चीनी भाई-भाई" {चर्चा अंक - 1977} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

'yadon ki jagir".. sundr kavita

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

kavita verma ने कहा…

sundar prastuti ...