गुरुवार, 28 मई 2015

दामन बिछा गया कोई -

आँख छलकी तो शबनम आए
दामन बिछा गया कोई -
कोई आया तो सुनाया नगमें
रुसवा कर गया कोई -
खिल उठे गुल गीत गाया गुलशन
राग भर गया कोई -
महफूज थे अभी कदमों के निशां
मिटा गया बदरा कोई -
देखे हैं वो पल भी जिंदगी में
आफताब बना जर्रा कोई -
छांव पलकों की अक्स देखा हमने
रैन बिता गया कोई -

उदय वीर सिंह









3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-05-2015) को "जय माँ गंगे ..." {चर्चा अंक- 1990} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

Harash Mahajan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन !!

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

लाजवब - जय हो