राजमहल के राज नहीं हम
वन कानन की आवाज नहीं हम -
हम गुलशन के गुल भी नहीं हैं
तख्त नहीं हैं, ताज नहीं हम-
तख्त नहीं हैं, ताज नहीं हम-
जल जाएं यश उत्सव के दीये
संगीत के दीपक राग नहीं हम -
लौट आएगे स्वर बंद अधरों के
स्वर मधुर वो साज नहीं हम -
रंगते है हम घर ओ वसन को
किसी कफन के दाग नहीं हम -
हम ही हम हों मौजों किश्ति के
इतने भी आजाद नहीं हम -
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
सुन्दर भाव के साथ बेहतरीन प्रस्तुति दिया है आपने.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
http://iwillrocknow.blogspot.in/
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