मंगलवार, 26 मई 2015

राजमहल के राज नहीं हम

राजमहल के राज नहीं हम 
वन कानन की आवाज नहीं हम -

हम गुलशन के गुल भी नहीं हैं
तख्त नहीं हैं, ताज नहीं हम- 

जल जाएं यश उत्सव के दीये
संगीत के दीपक राग नहीं हम -

लौट आएगे स्वर बंद अधरों के 
स्वर मधुर वो साज नहीं हम -


रंगते है हम घर ओ वसन को
किसी कफन के दाग नहीं हम -

हम ही हम हों मौजों किश्ति के
इतने भी आजाद नहीं हम -
उदय वीर सिंह

2 टिप्‍पणियां:

Shanti Garg ने कहा…

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

Nitish Tiwary ने कहा…

सुन्दर भाव के साथ बेहतरीन प्रस्तुति दिया है आपने.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
http://iwillrocknow.blogspot.in/