जड़ हूँ
चेतनाविहीन नहीं
समझता हूँ वेदना व
संवेदना को.....
अवसरवादी नहीं हूँ....
मेरा जीवन लेन-देन पर नहीं
निर्वैर निश्चल
प्रेम पर सृजित,
आश्रय देता है खग को, मृग को
पथिक को भी ....
चिड़िमार बसंत में आता है
साधता है अपना लक्ष्य
भरकर ले जाता है लोथ,
पतझड़ में
दिखाई नहीं देता...
मेरा प्रत्येक अवयव
अहर्निश सेवा में है
इस लिए की
मैं जड़ हूँ .....
तुम हो बुद्धिमान
परजीवी ....
स्वार्थ जब तक
साथ
तब तक ......
उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
सरल जीवन सिद्धान्त, परोपकाराय।
सही कहा--अहम-विहीन होना भी पर-चिंतक होना ही है.
अहम-विहीनता संभव नहीं है--यदि हो तो पर-चिंतक हो जाती है,ऐसा हो जाय?
अहम-विहीनता संभव नहीं है--यदि हो तो पर-चिंतक हो जाती है,ऐसा हो जाय?
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