गुरुवार, 23 जुलाई 2015

भुला देना मेरे ऐब

साल गिरह पर कृतज्ञ  हूँ ,वाहेगुर की दया व आपके स्नेह का मित्रों ! ..
हृदय से आभार !
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भुला देना मेरे ऐब ,हौसला देकर
मुंतजिर हूँ नवाजों मुझे,वफा देकर -

माना की जर्रा हूँ पर तुम्हारा हूँ 
बिखर जाऊ के सम्हालो फलसफा देकर -

आसरा है तेरी, मोहब्बत का दोस्तों मेरे
चल न देना कहीं ,मुझे रास्ता देकर -

रौशन चिराग हैं ,पयाम गर्दिशी के
न भूल पाएंगे ये जींद कई दफा देकर -

उदय वीर सिंह

7 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.07.2015) को "मगर आँखें बोलती हैं"(चर्चा अंक-2046) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

ढेरों शुभकामनाऐं ।

Asha Joglekar ने कहा…

बहुत सुंदर।

कविता रावत ने कहा…

बहुत-बहुत हार्दिक मंगलकामनाएं!

कविता रावत ने कहा…

बहुत-बहुत हार्दिक मंगलकामनाएं!

रश्मि शर्मा ने कहा…

शुभकामनाएं स्‍वीकारें..उम्‍दा शेर हैं सारे

ज्योति-कलश ने कहा…

सुन्दर