साल गिरह पर कृतज्ञ हूँ ,वाहेगुर की दया व आपके स्नेह का मित्रों ! ..
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भुला देना मेरे ऐब ,हौसला देकर
मुंतजिर हूँ नवाजों मुझे,वफा देकर -
मुंतजिर हूँ नवाजों मुझे,वफा देकर -
माना की जर्रा हूँ पर तुम्हारा हूँ
बिखर जाऊ के सम्हालो फलसफा देकर -
आसरा है तेरी, मोहब्बत का दोस्तों मेरे
चल न देना कहीं ,मुझे रास्ता देकर -
रौशन चिराग हैं ,पयाम गर्दिशी के
न भूल पाएंगे ये जींद कई दफा देकर -
उदय वीर सिंह
7 टिप्पणियां:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.07.2015) को "मगर आँखें बोलती हैं"(चर्चा अंक-2046) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ढेरों शुभकामनाऐं ।
बहुत सुंदर।
बहुत-बहुत हार्दिक मंगलकामनाएं!
बहुत-बहुत हार्दिक मंगलकामनाएं!
शुभकामनाएं स्वीकारें..उम्दा शेर हैं सारे
सुन्दर
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