अक्षमता प्रशंसा को बीमार कहती है -
टूटा आत्मबल, पसरा आँखों में सूनापन
अपदृष्टि मृगमरीचिका को जलधार कहती है -
विपन्नता, संपन्नता को अधिकारहर्ता
अनुशासनहीनता सुकर्म को कदाचार कहती है
स्वेक्षाचारिता आचार को हीन ,अशक्त
पतिता वासना को अधिकार कहती है -
स्थूलता गतिमान को निराश्रय पथविहीन
हठवादिता परिमार्जन को धिक्कार कहती है
पराजय विजय को षडयंत्रकारी, निर्मम
विपथगा कृतघ्नता को संस्कार कहती है -
दिवास्वप्न का मानस गंतव्य को दीन
परजीविता,प्रयत्न को अपमान कहती है
दासत्व के अनुबंध में पाई पद- प्रतिष्ठा
पादुका की चोट को सम्मान कहती है -
उदय वीर सिंह
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