मंगलवार, 4 अगस्त 2015

कालजयी होने की अभिलाषा नहीं

परिचय मेरा कोई विशेष नहीं है 
भारत के सिवा मेरा देश नहीं है -
रहो अमन से ,मुझे  भी रहने दो 
तुमसे मेरा कोई विद्वेष नहीं है -
दे चुका हूँ संकल्प मे अपना शीश 
वलि निहितार्थ कुछ शेष नहीं है -
अक्षुण्ण रहेगी ,मेरी मातृ -भूमि 
जीवन का कोई और उद्देश्य नहीं है 
संस्कारों का दीप कभी बुझता नहीं 
माँ भारती का रूप स्मृति-शेष नहीं है -
कालजयी होने की अभिलाषा नहीं 
सेवादार हूँ इतर इसके संदेश नहीं है -

उदय वीर सिंह 

4 टिप्‍पणियां:

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

नमन श्र्द्धा सहित नमन इस भाव को, एस एहसास को, इस समर्पण और प्यास को ....

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

नमन श्र्द्धा सहित नमन इस भाव को, एस एहसास को, इस समर्पण और प्यास को ....

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सुन्दर

रचना दीक्षित ने कहा…

इस सुंदर भावना के लिए आपको शत शत प्रणाम.