ऊंचा हिमालय तुम्हारी तरह है
वो पत्थरों से तुम प्रेम से हो -
बहती है सरिता तुम्हारी तरह ही
वो नीर से है तुम नेह से हो -
जीता सिकंदर शमशीर लेकर
वो बैर से है तुम स्नेह से हो -
लेता अंगूठा कोई द्रोण बनकर
वो ज्वाल सा है तुम दीप से हो -
प्रारव्ध ऊंचा तुम सा नहीं है
वो कल्पना से तुम कर्म से हो -
उदय वीर सिंह
वो पत्थरों से तुम प्रेम से हो -
बहती है सरिता तुम्हारी तरह ही
वो नीर से है तुम नेह से हो -
जीता सिकंदर शमशीर लेकर
वो बैर से है तुम स्नेह से हो -
लेता अंगूठा कोई द्रोण बनकर
वो ज्वाल सा है तुम दीप से हो -
प्रारव्ध ऊंचा तुम सा नहीं है
वो कल्पना से तुम कर्म से हो -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
वाह्ह बहुत ही सुन्दर प्रेरक रचना ...
ऊंचा हिमालय तुम्हारी तरह है
वो पत्थरों से तुम प्रेम से हो -
शुभकामनाये :)
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