दीपक बिना घर, दिवाली न होती है
बिना दर्द के अंख सवाली न होती है -
उलफत की डोरियाँ जीवन को बांधो
मानुख की जाति गोरी काली न होती है -
ग्रन्थों में देवी,क्यों पर्दे की नुमाइश
सृजना कभी काम-वाली न होती है -
बेबसी भूख में रोटियों का निवाला
अंजुरी से बड़ी कोई थाली न होती है -
अधिकार को जब दया वृत्ती माना
याचना से बड़ी कोई गाली न होती है -
उदय वीर सिंह
बिना दर्द के अंख सवाली न होती है -
उलफत की डोरियाँ जीवन को बांधो
मानुख की जाति गोरी काली न होती है -
ग्रन्थों में देवी,क्यों पर्दे की नुमाइश
सृजना कभी काम-वाली न होती है -
बेबसी भूख में रोटियों का निवाला
अंजुरी से बड़ी कोई थाली न होती है -
अधिकार को जब दया वृत्ती माना
याचना से बड़ी कोई गाली न होती है -
उदय वीर सिंह
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