संघर्षों के कानन मेँ
सुबह अजानी शाम पराई -
भूल गए अपनों से वादे
लौट आने की सुधि न आई -
कह कर आया सुख लाऊँगा
दुख की पोटल गुम न पाई -
कर्ज ,दवा तो याद रहे
कंगन बिंदी याद न आई -
हाथों के छाले कम न हुए
बढ़ती पैर की रही विवाई -
बापू की मिश्री माँ का पेठा
बेटी की जलेबी हो न पाई -
1 टिप्पणी:
उत्कृष्ट प्रस्तुति
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