शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

मेरा आँगन बाजार नहीं है -

हो सकता है तेरा जीवन 
मेरा जीवन लाचार नहीं है -
हो सकता है तेरा आँगन 
मेरा आँगन बाजार नहीं है -

बिक जाऊंगा स्वार्थ अर्थ मेँ
यह मेरा सभ्याचार  नहीं है 
ना दरबारी हूँ न राग-दरबारी 
दासत्व मुझे स्वीकार नहीं है -

हर पल जीता निज स्वांसों पर 
कुछ भी कहीं उधार नहीं है ,
निर्माणक हूँ संवेदन-शाला का 
वेदन विच्छेदन आचार नहीं है -

अशिष्ट झूठ छल का सम्पादन 
मनव संस्कृति संस्कार नहीं है 
हास्य परिहास का छंद विनोदी
धर्म-ग्रन्थों का सार नहीं है -
हो सकता है ,तेरा मधुवन 
मेरा मधुवन व्यापार नहीं है 
हैं अंक खुले शरणागत को 
हत वैरी को अधिकार नहीं है -

उदय वीर सिंह 




1 टिप्पणी:

Onkar ने कहा…

उत्कृष्ट प्रस्तुति