तुम बदल न पाये खुद को
औरों को बार बार कहते हो -
फूटी कौड़ी भी न दे सके
जरूरतमंदों को जनाब
बड़ी सिद्दत से जाँ निसार कहते हो -
बड़ी मुश्किल से निकाला सिर खिड़कियों से
मजलूमों का लंबरदार कहते हो -
इश्कों हुश्न से भरा है पूरा पन्ना
जिसे बेबसों का अखबार कहते हो -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
उम्दा भाव अभिव्यक्ति
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