पानी बंदबोतल में, बंद दरवाजे हैं
आँखों में नीर ले चिरैया पियासी है -
आँखों में नीर ले चिरैया पियासी है -
पीर है पहाड़ जैसी ढलती न गलती है
नजरों के पिंजरे में कितनी उदासी है -
अम्मा के कान्हे लिपटी बापू के पाँव में
पुछती गुनाह क्यों बेटी मारी जाती है -
उड़ने को पंख दे दो खुला आसमान दो
तारों को तोड़ कैसे जमीं पे ले आती है -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
भाई उदय जी सतश्री अकाल |बहुत ही उम्दा रचना के लिए भाई और नववर्ष की शुभकामनाएँ |
एक टिप्पणी भेजें