शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

बैसाखियाँ साथ होती हैं

उन्माद की राहों में पनाहों में बसर नहीं होता
बसा पानी की लहर , कोई  शहर नहीं होता -

मिलते हमराह,उजालों में दो कदम के लिए
अँधेरों में अपना साया भी हमसफर नहीं होता -

टूट  जाते  हैं ,बिखर जाते हैं ,बसाये सपने   
उसे शमशान कहते हैं ,वो  घर  नहीं होता  -

छोड़ा साथ अपनों ने ही नहीं ,पैरों ने कभी
बैसाखियाँ साथ होती हैं तन्हा सफर नहीं होता -



उदय वीर सिंह  

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

निर्वाण पथ पर -

छोड़ता हूँ गंतव्य तुम पर
तुम मिलो या न मिलो
मुक्त हुए अब पग हमारे 
मैं निरंतर प्रयाण पथ पर -
संकल्प मेरा दे सकेगा ,
उर्मियों का कुम्भ अक्षय
लक्ष्य का सज्ञान भी है
संधान भी निर्माण पथ पर -
अक्षित रहा न तेज वैभव
कब चुका मैं वीथियों से
कुल कलश के आम्र पर्ण
सिंच देंगे निर्वाण पथ पर -
स्वप्न में सन्यास कब
वलिदान का प्रतिदर्श हूँ
विच्छेदित हो शीश धड़ से
तो गिरे कल्याण पथ पर -
उदय वीर सिंह







मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

वहम के पार ....

तेरी हनक के गुब्बार में गर
तेरी आवाज सुनाई दे
तलाशे  वजूद भी जारी रखना -
**
पकड़ मजबूत रख दस्ते शमशीर की 
ये उसी की होती है 
जिसके हाथ में होती है -
***
उसके हाथ में छैनी हथौड़ी गैंतीयां हैं 
राजमहल बनाता है 
जब थाम लेगा कलम 
संविधान भी बना सकता है -
**
वो ठहरा है राहे मजिल इंतजार करने दो ,
शायद  उसे जरूरत हो
हमकदम हमसफर की -
**
दरख्त का शिखर भी सोचता 
के जड़े दफन हैं 
तो सिर्फ उसके वजूद के जानिब -
**
वो गया तो न लौटा कभी तेरे दर 
तूने कांटे दिये या फूल 
ये तुम जानो -
**
किसी की मुकद्दर पे तुम्हें रोना आए ,
के  पहले अपनी मुकद्दर का
माजी देखो -
***
सृष्टि की अनमोल सहचरी
सेवा के आँगन कानन
सुख-दुख निज विस्मृत करती
पर सेवा में आभारी है





रविवार, 15 फ़रवरी 2015

शहादत पर हँसना नहीं आता-

कोशिशे तमाम करता हूँ
मुझे कहना , नहीं आता -
वो सागर, मैं हिमालय की ओर
दरिया संग बहना नहीं आता -
परेशां हूँ दो रोटियों के बाबत
मैखाना कहता है मिलने नहीं आता -
इंसानियत के सवाल पर पाता हूँ
मुझे बदलना नहीं आता -
खुश हूँ तेरी महफिल को ठुकरा कर
शहादत पर हँसना नहीं आता-
शराब नहीं मैं आदमी हूँ
पैमानों में ढलना नहीं आता
उदय वीर सिंह

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

वर्तमान प्रखर लिखना -

रह  जाएंगे  प्रतिपर्ण  शेष   
उनपर भाव मधुर  लिखना -
शिखर चढ़ेगी स्नेह वल्लरी 
आशा  को  रहबर  लिखना -
श्रम विन्दु भाल पर आएंगे 
आशीष  नेह प्रवर लिखना -
एक पल  अवसर बनता है 
पल  को  संवत्सर लिखना-
संकट अशेष मूल्यांकित हो 
विषमता को अवसर लिखना-
भविष्य सुनहरा जागृत हो 
वर्तमान प्रखर लिखना -
प्रलेख समृद्ध संचित होते 
विषय कथ्य सुंदर लिखना -

उदय वीर सिंह  

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

नीरहीन क्षितिजा कब होती-

नीरहीन क्षितिजा कब होती-
दिनमान बृहद, ढकता कैसे
घन - बादल के छा जाने से
नीरहीन क्षितिजा कब होती 
कहीं मरुधर के बन जाने से -
***
नीरवता  समृद्ध  कब  कैसे
कोकिल के चुप हो जाने से
कब  कोलाहल  अमर हुआ
तूफान .तड़ित आ आने से -
***
गति हृदय की ठहरी कब
बज्र ,घातों , संघातों से
अत्र - तत्र बिखरा भंगुर हो
परिमल प्रसून आघातों से -
***
सद्द-ग्रंथ प्रवीण झूठे कैसे
कुतर्कों कथ्य प्रमाणों से
जीवन झूठा कहते वंचक
जीवन अवधि के जाने से -
***
उपवन अस्तित्व नहीं खोता
ज्वाल कभी आ जाने से
बिछड़े को बिसराना होता
बसता चमन ऋतु आने से -
***
उदय वीर सिंह

शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

दोहों से अनुराग -

सच्चा प्रेम गरीब का ,बंधन - मुक्त सूजान
मंदिर में श्रीराम भजे, मस्जिद में रहमान - ।।
**
प्रीत ठौर न बाँधिए कर मुक्त- हस्त सम्मान
शिखर शीश आसन मिले जब छूटा अभिमान -।।
***
झुका शीश सम्मान में अप्रतिम संचित मान
झूठा दंभ बंचित सदा पाता अपयश अपमान - ।।
***
त्यागा स्नेह गरीब का ,त्यागा तरुवर छांव
पावस में छाजन नहीं , जला ज्येष्ठ में पाँव - ।।
***
उदय वीर सिंह

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

शीश महल के रहने वाले

शीश महल के रहने वाले
शीशगंज को क्या जानें -

रबड़ी  खाने  वाले जन्तु
दानों की कीमत क्या जानें -

चीनी चाय पानी क्या होते 
धंधे वाले क्या जाने -

खाने वाले मुर्ग मुसल्लम 
जीवन की कीमत क्या जाने -


कितना मुश्किल तन ढकना 

स्वर्ण सिंगासन क्या जाने -

उदय वीर सिंह

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

रंग किसका भगवा

किसको नाथू राम ,किसको गांधी कहें
किसको शीतल बयार किसे आँधी कहें -

घात - प्रतिघात  में  चोले  बदल  गए
रंग किसका भगवा , किसे खादी कहें -

ये दौर है ,कब कौन ,क्या बन जाएगा
किसको मल्लिका कहें  किसे बांदी कहें -

इबारत लिखी गयी खून से या पानी से
किसको पराधीनता किसे आजादी कहें -

जहां कल था वहीं आज भी है हिदुस्तान
यतिमी भूख मुफ़लिसी की जुबानी कहें -

कब्र की बजाय नफ़रतों की सरहदें बनीं 
उन्हें विजय कहें या हार की निशानी कहें -

उदय वीर सिंह