सोमवार, 30 मार्च 2015

है खून कुछ बाकी रगों में...

बनकर मुसाफिर देखिये 
मंजिल नहीं तो क्या हुआ
सिर्फ पत्थरो को कोसिए
ठोकर लगे तो क्या हुआ -
खून कुछ है बाकी रगों में
चुसिए लाश है तो क्या हुआ -
शमशान को अनुदान है
घर को नहीं तो क्या हुआ -
मदिरा का सेवन कीजिये
रोटी नहीं तो क्या हुआ -
जनता को जी भर लुटिए
रोजी नहीं तो क्या हुआ -
कोठों पर जाकर सोईये
वोटी नहीं तो क्या हुआ -
सर आप अमृत पीजिए
जग मुआ तो क्या हुआ -
अगले जनम को दक्षिणा
यह जन्म भूखा क्या हुआ -
रंगमहल हँसता रहे नित
गरीब रोये क्या हुआ -

दर्द की व्याख्या मिली है
मरहम नहीं तो क्या हुआ
हैं हम लगाए आस बैठे
जुमला हुआ तो क्या हुआ -
उदय वीर सिंह

रविवार, 29 मार्च 2015

वसीयत

दुख हुआ तेरी वसीयत पढ़कर ,
हमने सोचा था दौलत का अंबार होगा
कामिल इंकलाव लिख गए हो -
****
तुमको होगा मलाल अपने दुश्मनों से
जो मेरे दोस्त निकले ,
यकीनन तुम अपना समय बर्बाद कर गए हो
****
घर बनाने की जगह उम्र जेल में गुजारा
तुमको रोटी न मिली
मुझे नसीहतें बेहिसाब दे गए हो -
उदय वीर सिंह

शनिवार, 28 मार्च 2015

वंचक प्रलाप करता है

लोथ कभी जीवन का उनवान नहीं करते 
वीरों का कभी कायर सम्मान नहीं करते -
समर्थ शक्ति प्रज्ञा से अभिमान नहीं करते 
वंचक प्रलाप करता है विद्वान नहीं करते -
***
करते अनुशीलन, निश्छल सरल हृदय
खल का भी किंचित अपमान नहीं करते
हैं बने शिखर प्रतिमान पी परमार्थ गरल
स्व-हितार्थ कभी ,अमृतपान नहीं करते -
****
उदय वीर सिंह

बुधवार, 25 मार्च 2015

भूखा बालक सो जाता है -

बुत की करते प्राण प्रतिष्ठा
एक जीवन बुत हो जाता है -
श्वानों का स्वास्थ्य परीक्षण है,
मानव जीवन कुम्हलाता है -
धार दूध की नदनालों में
भूखा बालक सो जाता है -
वसन नहीं बेबस तन नंगा 
शर्माता तन को छिपाता है -
लाचारी में एक बाला नंगी है
एक बाला का शौक निराला है -
बिन रोटी आँतें सुख गईं
एक रोटी से कतराता है -
एक हाथ अनेकों मांग भरे
एक वैधव्य लिए मिट जाता है -
एक सोने की सेज उनींदा है
एक काँटों पर सो जाता है -

उदय वीर सिंह
       


रविवार, 22 मार्च 2015

ईमान ने सजा पाई है -

कल ईमान के बिकने की खबर थी
आज बेईमान के बिकने की खबर आई है -

बिका था ईमान टूटती साँसों के लिए
बेईमान ने नयी हवेली की चाभी पायी है -

दर दर की ठोकरों ने ईमान को सोने न दिया ,
फूलों की सेज बेईमान को नींद आई है -

पद और प्रतिष्ठा में ईमान पीछे रह गया ,
बेईमान ने सदाचारश्री की पद्द्वि पाई है -

बिकते वक्त ईमान के पाँव डगमगाये थे ,
बेईमान की ड्योढ़ी पर खुशी छाई है -

मातम था चेहरे पर आखिर जी न पाया ,
ईनाम बेईमान ने ,ईमान ने सजा पाई है -

उदय वीर सिंह

मंगलवार, 17 मार्च 2015

संवाद होना चाहिए....

****
रश्मिरोधी द्वार पर ,आघात होना चाहिए
मौन हुए अधरों से अब संवाद होना चाहिए
समुन्नति में बाधक पीर वर्जनाएं क्यों जीएं
आयुहीन हो निहारिका संघात होना चाहिए -

कभी संहिता की कोख संशय आकार ले
हर हृदय में प्रेम और विस्वास होना चाहिए
क्षितिज पर हों पाँव के पुष्ट आधार निर्मित
उड़ान के लिए  मुक्त आकाश होना चाहिए -



उदय वीर सिंह

रविवार, 15 मार्च 2015

रास्ते सँकरे हुए आलिशान गाड़ियों के...

जब से इंसान से धनवान बनने लगे
टुकड़ों में धरती आसमान बंटने लगे -

रास्ते सँकरे हुए आलिशान गाड़ियों के
बाजू के रिहाईसी मकान गिरने लगे -

मखमलीदार झड़ियों का दौर आया के 
छायादार   फलदार पेड़ कटने लगे -

नुमायिशी रास्तों की तामीर में खुश हुए
मस्जिदो- मंदिर के बजूद मिटने लगे -

माँ तड़फती बिलबिलाते बच्चे भूख से
प्रतिष्ठा बढ़ी गोंद में कुत्ते पलने लगे -


उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 13 मार्च 2015

कब उत्थान संभव है ....

'मंगल प्रभात मित्रों !
बयान दर्ज है - [नशा दुर्भाग्य को अनुमोदित करता है ] 
****
बस सपनों के गांवों में ,कब सिंहासन संभव है 
सोकर वैभव की यादों में, कब उत्थान संभव है 
स्वाद रसीले जिह्वा कब बिन भोजन संभव है 
मयंक मशाल के जलने से कब विहान संभव है -

उदय वीर सिंह'
बस सपनों के गांवों में ,कब सिंहासन संभव है
सोकर वैभव की यादों में, कब उत्थान संभव है 
स्वाद रसीले जिह्वा कब बिन भोजन संभव है
मयंक मशाल के जलने से कब विहान संभव है -

उदय वीर सिंह


गुरुवार, 12 मार्च 2015

गुब्बारो गर्द क्या है...

'कारवां गुजारा है पूछता है गुब्बारो गर्द क्या है - 
शिगाफों से झाँकते जख्म पूछते हैं दर्द  क्या है 
किसको नहीं मालूम कि जमाने का मर्ज क्या है 
कितनी संजीदगी से हम भुला बैठे  फर्ज क्या है -
उल्टी सतर पढ़ रहे हैं , दस्तावेज़ में दर्ज क्या है  
तुम जमीं हो न हम आसमां मिलने में हर्ज क्या है -

उदय वीर सिंह'

कारवां गुजारा है पूछता है गुब्बारो गर्द क्या है
शिगाफों से झाँकते जख्म पूछते हैं दर्द क्या है -

किसको नहीं मालूम कि जमाने का मर्ज क्या है
कितनी संजीदगी से हम भुला बैठे फर्ज क्या है -

उल्टी सतर पढ़ रहे हैं दस्तावेज़ में दर्ज क्या है 
तुम जमीं हो नहम आसमां मिलनेमें हर्ज क्या है -

उदय वीर सिंह

रविवार, 8 मार्च 2015

तुम श्रद्धा हो .....

'पूजा हो 
प्रतिफल हो 
विस्वास अटल ..
श्रद्धा हो 
निष्ठा हो अविचल 
शक्ति 
वत्सला स्नेह 
निर्मल मन 
अभिव्यक्ति 
सृजन की सृष्टि की ....
प्रतिमूर्ति 
दया की करुणा की ....
संभावना 
असीम 
कल्याण की कृपा की... 
नारी !
तुम भी कुछ कह  दो 
क्या हो ...
क्यों हो अबूझ 
खोल रहस्य 
मत हो मौन ...
नारी !
तुम श्रद्धा हो ..... । 

उदय वीर सिंह'पूजा हो
प्रतिफल हो
विस्वास अटल ..
श्रद्धा हो
निष्ठा हो अविचल 
शक्ति
वत्सला स्नेह
निर्मल मन
अभिव्यक्ति
सृजन की सृष्टि की ....
प्रतिमूर्ति
दया की करुणा की ....
संभावना
असीम
कल्याण की कृपा की...
नारी !
तुम भी कुछ कह दो
क्या हो ...
क्यों हो अबूझ
खोल रहस्य
मत हो मौन ...
नारी !
तुम श्रद्धा हो ..... ।

उदय वीर सिंह

स्वच्छता की तरफ

'मंगल प्रभात मित्रों  !
बयान दर्ज है - [ समस्त भारत के चेतनशील प्रबुद्ध जनों से ...]
****
आ कदम को बढ़ाएँ स्वच्छता की तरफ 
आ कदम को ......
भारत भूमि को देखो वादियों की नजर 
हमने देखा बहुत दूसरों की तरफ  -
सोणे पाँवों में सजती महावर रहे 
हम भी सोचें सफाई व्यवस्था की तरफ -
मलिनता बीजती है अकथ व्याधियाँ 
स्वर उठाएँ चलो आपदा की तरफ -
स्वच्छ भारत रहे स्वस्थ भारत  रहे 
समर्पित हों इसकी महत्ता की तरफ -
हर गली गाँव अपना शहर स्वच्छ हो 
खूबसूरत लगे दंत कथा की तरह -

उदय वीर सिंह'आ कदम को बढ़ाएँ स्वच्छता की तरफ
आ कदम को ......

भारत भूमि को देखो वादियों की नजर
हमने देखा बहुत दूसरों की तरफ -

सोणे पाँवों में सजती महावर रहे
हम भी सोचें सफाई व्यवस्था की तरफ -

मलिनता बीजती है अकथ व्याधियाँ
स्वर उठाएँ चलो आपदा की तरफ -

स्वच्छ भारत रहे स्वस्थ भारत रहे
समर्पित हों इसकी महत्ता की तरफ -

हर गली गाँव अपना शहर स्वच्छ हो
खूबसूरत लगे दंत कथा की तरह -

उदय वीर सिंह

शनिवार, 7 मार्च 2015

रंग बरसे- जब बरसे - रंग बरसे

'रंग बरसे, जब बरसे 
****
कब होली ने आँगन छोड़ा 
कब चोली ने दामन -
कब फूलों ने खुशबू छोड़ी
कब रंगों ने अपनापन -
कब गीतों को स्वर ने छोड़ा
कब फुहार ने सावन -
ऋतु बसंत का खुला खजाना 
छोड़े प्रीत कब फागन -
लालित्य ललीके खुले बंद 
सजनी छोड़े कब साजन -
अंग प्रत्यंग रस रंजन ढलता 
सुघर सौम्य मनभावन -

उदय वीर सिंह'****
कब होली ने आँगन छोड़ा
कब चोली ने दामन -
कब फूलों ने खुशबू छोड़ी
कब रंगों ने अपनापन -
कब गीतों को स्वर ने छोड़ा
कब फुहार ने सावन -
ऋतु बसंत का खुला खजाना
छोड़े प्रीत कब फागन -
लालित्य ललीके खुले बंद
सजनी छोड़े कब साजन -
अंग प्रत्यंग रस रंजन ढलता
सुघर सौम्य मनभावन -
उदय वीर सिंह

बुधवार, 4 मार्च 2015

संग हूँ साहिल का

खुशनसीबी है वक्त की या ,मैं खुशनसीब  हूँ
उदय हूँ मैं सुखनवर, किसी का रकीब हूँ -

ओढ़ कर चाँदनी की चिट्टी शाल तारों टंके बूटे
गमजदा ने भी कहा मैं उसके कितना करीब हूँ -

नाव की खुशफहमियों पर, जीता है बुलबुला
संग हूँ साहिल का मौजों का कितना अजीज हूँ -

गुस्ताखियों को मुआफ ही नहीं दुआ मांगा
मेरे पास वो दिल है ,क्या हुआ जो गरीब हूँ -

उदय वीर सिंह