रविवार, 31 मई 2015

जिन्हें मरना नहीं आता -

मुझे टूटना नहीं आता ,व बिखरना नहीं आता 
शिकायत आँसूओं की है ,हमें रोना नहीं आता -

रखे जज़्बात फिरते हो तुम्हें कहना नहीं आता 
कहे रेशमी रुमाल रैम्प पर चलना नहीं आता -

सिवा रब की निजामत छोड़ झुकना नहीं आता 
कभी पीता नहीं हूँ मै हमे फिसलना नहीं आता -

जो सच्चा प्यार करते हैं वो नुमायिश नहीं करते 
हैं जीते वो ज़लालत में, जिन्हें मरना नहीं आता -

मेरा दिल मुझे कहता कि तुम यार अच्छे  हो 
हैं सँवरती फिजा तुमसे तुम्हें संवरना नहीं आता -

उदय वीर सिंह 

गुरुवार, 28 मई 2015

दामन बिछा गया कोई -

आँख छलकी तो शबनम आए
दामन बिछा गया कोई -
कोई आया तो सुनाया नगमें
रुसवा कर गया कोई -
खिल उठे गुल गीत गाया गुलशन
राग भर गया कोई -
महफूज थे अभी कदमों के निशां
मिटा गया बदरा कोई -
देखे हैं वो पल भी जिंदगी में
आफताब बना जर्रा कोई -
छांव पलकों की अक्स देखा हमने
रैन बिता गया कोई -

उदय वीर सिंह









मंगलवार, 26 मई 2015

राजमहल के राज नहीं हम

राजमहल के राज नहीं हम 
वन कानन की आवाज नहीं हम -

हम गुलशन के गुल भी नहीं हैं
तख्त नहीं हैं, ताज नहीं हम- 

जल जाएं यश उत्सव के दीये
संगीत के दीपक राग नहीं हम -

लौट आएगे स्वर बंद अधरों के 
स्वर मधुर वो साज नहीं हम -


रंगते है हम घर ओ वसन को
किसी कफन के दाग नहीं हम -

हम ही हम हों मौजों किश्ति के
इतने भी आजाद नहीं हम -
उदय वीर सिंह

सोमवार, 25 मई 2015

विन्यास

विन्यास
कभी कुसुम की डार कभी
नागफनी की सेजों पर -
कहते जन्नत की हूर जिसे
रखा उनको है नेज़ों पर -
दिलो जिगर कहने वाले
बांटे समझौतों की मेजों पर -
गीता श्र्द्धा प्रज्ञा सीता कैसे
चित्रित हैं विकृत संदेशों पर -
पायल के स्वर रार अंतःपुर
गीत लगते हैं कोठों पर -
सात फेरे ले सात जन्मों की
छोड़ चले अंध - मोड़ों पर -
खुशियों का हक मंसूख हुआ
जीना है तो आदेशों पर -
पल्लू सरका तो संस्कार गए
आनंद मनाते देख कलरफ़ुल पेजों पर-
उदय वीर सिंह
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शनिवार, 23 मई 2015

वतन महफूज नहीं है रहने के लिए -

बचा ही  क्या है ,अब कहने के लिए 
वतन महफूज नहीं है रहने के लिए -

धरती ओ आसमां में जहर घुल रहे हैं 
शराब कामिल ,पानी नहीं पीने के लिए -

रोटी कपड़ा मकान को विंदास बोलिए 
फुटपाथ भी नहीं ख्वाब देखने के लिए -

फर्क कितना आबरू में अमीरों गरीब की 
बना खरीदने के लिए एक बेचने के लिए -

इंसाफ के सफर में कितने फ़सील हैं 
फरियादी रह गए हैं  तड़फने के लिए -

उदय वीर सिंह 

रविवार, 17 मई 2015

देख दिल की नजर....

देख दिल की नजर इंसान दिखाई देगा
गीत इलहाम का सब ओर सुनाई देगा -

किसी के दर्द में , हमदर्द बनकर देखो
अपने तो सराहेंगे पराया भी बधाई देगा -

मंजिल मिल जाती है तिनकों के सहारे
बात छोटी सी  क्या उसकी उतराई देगा -

उदय ढूंढा है दर- बदर ताउम्र जिसको
दिल रब का घरौंदा है देखो तो दिखाई देगा -

कुछ मासूम सवालों को हिजाब दे दोगे
फिर कभी पुछेंगे तो क्या सफाई देगा -

उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 15 मई 2015

यादों को जागीर बना लूँ ...

चाहता हूँ तुम्हें अपनी तकदीर बना लूँ 
एक मुसव्विर तरह, तस्वीर बना लूँ -

झील आँखों में ,चाँद किश्ती सा लगे 
फलसफ़ा ए-जिंदगी में नजीर बना लूँ -

न होगा तुमसा तेरे किरदार में कोई 
मुनासिब होगा की तुम्हें जमीर बना लूँ -

अच्छा हो की इल्तजा को गुनाहों में लिखो 
सजा में तुमको अपना पीर बना लूँ -

रिआया हूँ तुम्हारी मैं वफाओं का 
चाहता हूँ तेरी यादों को जागीर बना लूँ ...

उदय वीर सिंह 

बुधवार, 13 मई 2015

निभाए रिश्ते -

बाढ़ में बह गए सच्चे रिश्ते
फफूंद की तरह उग आये रिश्ते -

जब लोड़ थी दर्द परवान था
घर से बाहर निकल न पाये रिश्ते -

आवाज देती रहीं बैसाखियाँ मेरी
कैसे अपने हुए ,पराए रिश्ते -

आगोश में ले रही थी किश्ती दरिया
शिद्दत से तिनकों ने निभाए रिश्ते -

सुलझाने की कोशिशों में रहा ताउम्र ,
हर मोड पर बे-तरह उलझाए रिश्ते -

करा ली वरासत, जब्त कर ली दुनियां
कैसे धोकर हाथ मुस्कराए रिश्ते -

उदय वीर सिंह

अपने हाथों लिखनी होगी -

Udaya Veer Singh's photo.
चाहते हो पाँवों को आसमां देना
तो जमीं भी देनी होगी -
चाहते हो दासतां को बयां करना
तो पहले सुननी होगी -
मुकद्दर न आई है खुद चल करके 
अपने हाथों लिखनी होगी -
बाद जाने के आबाद खामोशी होगी
होगी तो तेरी कमी होगी-
सँजो लेना यादों से प्यार का आँचल
जब आँखें शबनमीं होगी -
उदय वीर सिंह

रविवार, 10 मई 2015

हे माँ ! ..

Udaya Veer Singh's photo.

मातृ- दिवस ..[अर्पिता को अर्पित जीवन .. शत -शत वंदन ....]
****
माँ दया की पात्र नहीं 
सृष्टि को शर्मिंदा न करो -
माँ बटवारे की वस्तु नहीं 
माँ गंगा है, गंदा न करो -
माँ पूजा अर्चन समिधा है
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा
माँ को शीश झुकाये जाते हैं
श्रद्धा को नंगा न करो -
करुणा त्याग दया की देवी
क्यो सिसके गलियों में
आरंभ तुम्ही से अंत तुम्हीं पर
पावन को पतिता न कहो -
उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 8 मई 2015

पथ का मूयांकन....

पथ का मूयांकन पथिक नहीं....
मंजिल करती है
यश-अपयश के काल-खंड कलम नहीं
शुचिता लिखती है
श्री उपसर्गों की दानशीलता वैभव नहीं
प्रज्ञा बनती है 
शोक विकल अतिरंजित उर से व्यथा नहीं
कविता बहती है -
दीवा के घृत- कोशों में बाती नहीं
प्रतिभा जलती है
उत्तान श्रिग हिम खंडों से बर्फ नहीं

संस्कृति पिघलती है -

उदय वीर सिंह 

बुधवार, 6 मई 2015

आवेदन का आभार न दो -

दो मत अपना प्यार भले
संवेदन को प्रतिकार न दो -

निर्मित निमित्त परिवर्तन
आवेदन का आभार न दो -

ज्वाल बने शीतल हिमनद 
उस अग्नि को सहकार न दो -

कर्तव्य विमुख द्रोही जीवन का
पल्लव को संस्कार न दो -

जब म्यान सम्हल न पाती हो
उन हाथों में तलवार न दो -

वाणी में चाहे सूनापन दे दो
भाषा में व्यभिचार न दो -

उदय वीर सिंह

रविवार, 3 मई 2015

जब सावन सो जाता है .....

जब सावन सो जाता है
मधुवन को रोना पड़ता है -
जब हाथों से औज़ार गए
तब भूखा सोना पड़ता है -
रत कालजयी कर्तव्यों में
अपनों को खोना पड़ता है -
फूलों की चाहत में मितरा
काँटों को सहना पड़ता है -
विष की दवा विष ही होती
संग विष को ढोना पड़ता है -
दर्शन विहीन मानस को
मिथकों में जीना पड़ता है -
-उदय वीर सिंह

शनिवार, 2 मई 2015

- जन्नती महल -

   - जन्नती महल - ( लघु कथा )
आज मजदूर दिवस पर मायूसों मजलूमों विकलांगों बेरोजगारों लाचार निर्धनों ने आम-सभा की बैठक आहूत की । एक कार्यशाला का आयोजन जिसमें गणमान्य शिक्षाविद ,तकनीकी विशेषज्ञ चिकित्सक समाजशास्त्री ,मनोचिकित्सक ही नहीं वरन पूंजीपति ,धनपति रईसों ने भी अपनी उपस्थिती दर्ज कर अपनी संवेदना अपने विचार आम- जनमानस के समक्ष रखे । बड़े आलंकारिक शब्द विन्यास ,धाराप्रवाह सरस सुबोध अनुकूलित प्रवर भाव ,मानो साम्यता ,सहृदयता की गंगा अपने अप्रतिम वेग स्वरूप को प्राप्त हो गयी हो । मधुरतम भाव में मलय समीर दग्ध उरों,विकल मानस को दानशील भाव से शीतलता प्रदान कर रहा हो । अद्द्भुत समागम ,परम स्नेही वातावरण का प्रबोध । ऐसा प्रतीत होता है मानो समस्त विकृतियों समस्याओं का समूल नाश अवश्यंभावी है । मानो निराकरन ही हो गया । विषद रूप से प्रत्येक कल्पों- विकल्पों ,क्षेत्रों- प्रक्षेत्रों का विच्छेदन ही नहीं क्रिया-प्रतिक्रिया हुई । उपसंहार में भ्रांतियाँ व अनेकता पूर्ववत निष्ठावान रहे ।
इस दमित दुर्दिन के मारे विपन्न असहाय जनों के उत्थानार्थ कुछ उत्साही जनों ने एक श्रव्य -दृश्य का प्रस्तुतीकरण किया जो विभिन्न भावों व कृत्यों का प्रतिनिधित्व कर रहा था ।
मंच पर तानाशाह का विशाल सिंहासन सुशोभीत हो रहा है । कुछ देर में उनका प्रवेश होता है ।
जयकार का उन्मादी स्वर गूँजता है , फिर सुन्यता स्थान लेती है । दरबारी झुकी मुद्रा में खड़े होते हैं
मेरी जन्नती महल के तामीर की कैफियत क्या है बयां किया जाए ।कर्कस गूँजता स्वर उभरा ।
श्रीमान ! आपके हुक्म की अदुली इस जमीं-जहां के इंसान की कुबत में नहीं है । महल बन कर तैयार है । अभी प्रवेश वर्जित है । आप की आज्ञा के मुताबिक सारे हुनरमंद कारीगरों, संगतराशों को कैद में रखा गया है । अभी उन्हें अपने वतन लौटने की इजाजत नहीं दी गयी है । जन्नती महल में प्रवेश का आगाज आप की आज्ञानुसार ही मुमकिन है । सुगंधित इत्र ,और जल से महल के फर्स धोकर साफ कर दिये गए हैं । जर्रे की भी हिम्मत वहाँ से होकर जाने की नहीं रही । सीसे की माफिक महल बेमिशाल कयामती हूश्न में आप की प्रतीक्षा में है । प्रधान सेवक श्री शाहबाली ने झुकी नजरों से जन्नती महल के बारे में बताया ।
शाहबाली जी मुझे खुशी हुई ! पहली और अंतिम जन्नती महल के बारे सुनकर । कर्कस स्वर में ताना शाह ने सामने देख संबोधित किया ।
जयघोष में समवेत स्वर उभरे ।
फिर खामोशी छा गयी । शमशान की तरह ।
तानाशाह उठ कर चला जाता है । क्रमसः दरबारी भी प्रस्थान कर जाते हैं ।
दूसरे दिन दरबार सजता है , तख्ते-शान पर तनाशाह काबिज होता है । दरबारी जय घोष में उसकी जैकार करते हैं । पुनः खामोशी छा जाती है ।
जन्नती महल के हालिया किस्से बयां किए जाएँ । तानाशाह की बर्बर आवाज गूंजी ।
जहाँपनाह आपके हुक्म की तामीर हो गई । आप का शुक्र है ।
जन्नती महल के नक्से को बनाने वाले का सिर कलम कर दिया गया ।
बहुत खूब । तानाशाह ने शाबाशी दी ।
जन्नती महल के कारीगरों के हाथ काट लिए गए हैं । शाहबाली ने जोश में भर कहा ।
क्या बात है । ताली बजाते हुये तानाशाह ने कहा ।
समवेत दरबारी तालियाँ बज उठीं ।
जिस कारीगर ने शयन कक्ष व हम्माम को बनाया व तराशा उसकी आंखे निकाल ली गईं हैं शाहबाली ने उदद्घोष किया ।
बहुत अच्छा ....बहुत अच्छा । तानाशाह ने खुश हो कर बोला ।
जन्नती महल की खूबसूरती कामगार कहीं बयां न कर सकें ,जुबान जुदा कर दी गयी है ।
शाबाश ! शाहबाली जी ! आप तो अच्छी और माकूल खबर देने में माहिर हैं कहीं उम्मीदों से जियादा
शुक्रिया मेरे आका । अदब से झुक कर शाहबाली ने खुशी जाहीर की ।
जहाँपनाह ! कारीगरों, मजदूरों की बसाई बस्तियों को जन्नती महल की शान में ज़मींदोज़ कर दिया गया है । उनकी वजह से महल की रौनक कम हो रही थी ।
क्या बात है ! क्या बात है ! शाहों के बीच रह कर आप का अंदाज शाही हो गया ,शाहबाली जी । तानाशाह ने सराहा ।
कल जन्नती महल में प्रवेश के मसले होंगे । कह कर तानाशाह उठ खड़ा हुआ ।
जय घोष कर दरबारी तानशाह के बाद रुखसत हुये ।
दरबार फिर सजा तानाशाह सिंहासन पर विराजमान हुआ । दरबार की कार्यवाही शुरू करने का तानाशाह का हुक्म हुआ।
शहंशाह आपकी निजामत में रिआया बहुत खुशो शकुन में है । बेइंतहा टैक्स देकर खजाने को मालामाल कर दिया । खुद भूखी रही खिराज दिया । बगैर मजदूरी श्रमदान किया । जन्नती महल के लिए अपना खून पसीना बहाया । बहुत फ़रमोश है रिआया । शाहबाली ने कहा ।
क्या बात है .... क्या बात है ! तानाशाह ने ऊंचे स्वर में हाथ उठा कर बोला ।
अगली वार को जन्नती महल में जश्न होगा । इससे पहले मेरी ख़्वाहिश है की शाहबाली जी को गिरफ्तार कर सजाये मौत दी जाए । सुरक्षा कर्मियों की तरफ इशारा कर तानाशाह ने कहा ।
क्यों की इनकी निजामत में फिर कोई जन्नती महल तामीर न हो । जिससे मेरी तौहीन हो ।
आवाम आवाक , मजबूर थी तालियाँ बजाने के लिए ।
मजदूर दिवस पर जन्नती महल का मंचन समाप्त हो गया था । फिर अगले मजदूर दिवस के मंचन निहितार्थ । समस्त विद्वतजन पंडाल छोड़ अपने सुरक्षाकर्मियों के सायों में अपने वाहनों की ओर जा ने लगे थे ।
उदय वीर सिंह    


  

शुक्रवार, 1 मई 2015

स्वर प्राणित हो तस्वीर से -

Udaya Veer Singh's photo.
[ मजदूर दिवस बदले कि .... मानव दिवस सम्पन्न हो ] 
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बिलट जाएं धृष्ट विवशताएं
कर अवमुक्त हो जंजीर से 
कर प्रयाण सठ अनुबंध टूटे
स्वर प्राणित हो तस्वीर से -
मुक्त हो प्रारव्ध की प्राचीर से
पाषाण की कब बदली नियति
हो जीवित कि मरे पथ प्रतीक्षा
स्वप्न आकार पाते तदवीर से -

उदय वीर सिंह