शनिवार, 28 नवंबर 2015

मुर्शद को कभी अपना

हर दर्द को आशिक़ी का दर्द न समझ
किसी की भूख के दर्द को अपना समझ -
फलसफा कोई भी हो अवाम के जानिब
इबादतखाने को अपना घर न समझ -
फलसफ़ों को ओढ़ कर तहजीब रहती है
मुर्शद को कभी अपना शागिर्द न समझ -
जख्म जो भरते नहीं वो खंजर के नहीं होते
गुलशन के गुलों को ही हमदर्द न समझ -
काया अनमोल है ये तुम्हारी समझ होगी
मातृभूमि की खाक को गर्द न समझ -
उदय वीर सिंह


शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

गुलाम बहुत हैं -

असहिष्णुता की बात पर परेशान बहुत हैं
खो गया इंसान कहीं अब भगवान बहुत हैं -
छीनी हंसी औरों की अब विलाप कर रहे
वे तोहमत लगा रहे जो बदनाम  बहुत हैं -
मुक्त नहीं हुए आजादी के बाद भी उदय
दरबारी मानसिकता के गुलाम बहुत हैं -
पीटने वालों छाती करा दो वापस ननकाना
साहिब हिन्दू सिक्खो के वहाँ मकान बहुत हैं
खड़ा करते हैं कटघरों में मुल्जिम की तरह
लगाते हैं इल्जाम जिनपर इल्जाम बहुत हैं -
बदलता नहीं साया रंग गिरगिट चाहे बदल ले
बदल लेने वाले पाला आज महान बहुत हैं
   

उदय वीर सिंह 

रविवार, 15 नवंबर 2015

खून खूनी जिंदगी ...

धर्म वालों मैं पुछना चाहता हूँ ---
***
किस धर्म का ये गीत है
खून खूनी जिंदगी -
किस पंथ की ये रीत है
कदमों के नीचे वंदगी -
करुणा दया के पाँव कटते
बेबस बनेगी जिंदगी -
किस धर्म की ये जीत है
रोएगी दर दर जिंदगी -
किस धर्म की ये प्रीत है 
लाशों पे जीती जिंदगी... -
किस धर्म की ये सीख है 
जीवन को जारे जिंदगी -

उदय वीर सिंह
     


सहिष्णुता/ असहिष्णुता ..





सहिष्णुता की बात पर परेशान बहुत हैं 
खो गया इंसान कहीं अब भगवान बहुत हैं -
छीनी हंसी औरों की अब विलाप कर रहे
वे तोहमत लगा रहे जो बदनाम बहुत हैं -
मुक्त नहीं हुए आजादी के बाद भी उदय 
दरबारी मानसिकता के गुलाम बहुत हैं - 
पीटने वालों छाती करा दो वापस ननकाना
साहिब हिन्दू सिक्खो के वहाँ मकान बहुत हैं -
खड़ा करते हैं कटघरों में मुल्जिम की तरह
लगाते हैं इल्जाम जिनपर इल्जाम बहुत हैं -
बदलता नहीं साया रंग गिरगिट चाहे बदल ले
बदल लेने वाले पाला आज महान बहुत हैं-

उदय वीर सिंह

शनिवार, 14 नवंबर 2015

नीर न जाने बहते क्यों .....

जब आँखों में नेह नहीं
नीर न जाने बहते क्यों ?

नेह नयन में आया जब
नीर न जाने बहते क्यों ?

सूनी आँखों के मरुधर...
प्रेम के बदल ढूंढ रहे
जलते पांव वेदन बढती है
नीर न जाने बहते क्यों ?

रूठा मीत परदेस बसा
न मना सके कर जोड़ उसे
ह्रदय मुकुर मन टूट गया
नीर न जाने बहते क्यों ?

उदय वीर सिंह