शनिवार, 5 मार्च 2016

हंसो बसंत ! हंसो बसंत

हँसो बसंत हँसो बसंत
चिर प्रतीक्षा में किसलय कुसुम
अब क्षितिज पर बसो बसंत
वन कानन उपवन उदासै
भर उर अंक कसो बसन्त
प्रत्याशा मुस्कान अधर धर
डगर अनंग संग वरो बसंत
कंचन कामिनी रस डोर प्रत्यंचा
यतन कुशल की करो बसंत
बिंध जाओगे प्रीत सरों से
चिर वेदन से डरो बसंत
उदय वीर सिंह

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-03-2016) को "ख़्वाब और ख़याल-फागुन आया रे" (चर्चा अंक-2273) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar Kedia ने कहा…

बहुत सुन्दर