रविवार, 20 मार्च 2016

स्वागत करता गंतव्य....

लड़खड़ाती
आवाज !
संशयी उलझते कदम !
समतल सपाट
सरल सीधे पथपर भी
गंतव्य
नहीं पाते .......।
स्पष्ट दर्शन
प्रखर मानवीय संवेदनात्मक
ध्वनि !
संकल्पित पग !
पथरीले ,दुर्गम , अंध
प्रखंडों में भी
निर्मित कर लेते हैं राह ,
स्वागत करता
गंतव्य ,
भरकर अपने अंक ..... ।

उदय वीर सिंह .










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