सोमवार, 21 मार्च 2016

छाज पुरानी बदलो जी ...

टपक रहा टूटा छप्पर छाज पुरानी बदलो जी 
 फटे लगे पैबंद पुराने, टाट पुरानी बदलो जी -
घुन लगे चारों पायों में चारों पाटी चटक  गई  
 बंद बंद से रस्सी टूटी खाट पुरानी बदलो जी -
कीचड़ -कीचड़ दुर्गंध सड़ांध पानी ठहर गया है 
निर्मित कर नव स्रोत नदीया का पानी बदलो जी -
परिदृश्य नवल तथ्य नए नव सृजन नव कथ्य 
हो नवयुग का निर्माण अभिशप्त कहानी बदलो जी -


उदय वीर सिंह 

1 टिप्पणी:

Vaanbhatt ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति...