फटे लगे पैबंद पुराने, टाट पुरानी बदलो जी -
घुन
लगे चारों पायों में चारों पाटी चटक गई
बंद बंद से रस्सी टूटी खाट पुरानी बदलो जी -
कीचड़
-कीचड़ दुर्गंध सड़ांध पानी ठहर गया है
निर्मित कर नव स्रोत नदीया का पानी बदलो जी -
परिदृश्य नवल तथ्य
नए नव सृजन नव कथ्य
हो नवयुग का निर्माण अभिशप्त कहानी बदलो जी -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
सुंदर अभिव्यक्ति...
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