रविवार, 10 अप्रैल 2016

छक्कों के संग हँसती बाला ....

सदा आईपीएल फले फूले
आवाम मरे तो क्या हुआ -
उतरे स्वर्ग अमीरी महफिल
किसान मरे तो क्या हुआ -
सींचो अपनी सड़क चौबारे
जीवन उजड़े तो क्या हुआ -
खेत खलिहान किसान दहकता
गाँव शमशान हुए तो क्या हुआ -
छक्कों के संग हँसती बाला
भारत रोये तो क्या हुआ -

उदय वीर सिंह

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (11-04-2016) को

Monday, April 11, 2016

"मयंक की पुस्तकों का विमोचन-खटीमा में हुआ राष्ट्रीय दोहाकारों का समागम और सम्मान" "चर्चा अंक 2309"

पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कविता रावत ने कहा…

पैसा नाचता है पैसा छक्का लगता है ..देश को दुनिया में खुशहाल दिखाने का नायब तरीका लगता है यह ....

चिंतनशील प्रस्तुति ..