मंगलवार, 24 मई 2016

छांव ठहरेगी कहाँ -

पाँव ठहरें तो ठहर जाएँ 
छांव ठहरेगी कहाँ -
किश्ती तो किनारों का सबब है 
दरिया ठहरेगी कहाँ -
जख्मों का चलन अपना है 
घटा बरसेगी कहाँ -
अच्छा है आँखों की जुबां नहीं 
दास्तां वो कहेगी कहाँ -

उदय वीर सिंह 



6 टिप्‍पणियां:

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

एक छोटी सी भावपूर्ण रचना। अच्छी लगी।

अभिषेक शुक्ल ने कहा…

सुंदर।

Unknown ने कहा…
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Unknown ने कहा…
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Unknown ने कहा…
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Unknown ने कहा…

उदय वीर जी आप ने बहुत ही सही बात कही है आज के समय में समय भुत तेजी से आगे निकल रहा है जो ठहर वो पीछे रह जायेगा आपकी ये कविता बहुत ही खूबसूरत है आप इस तरह की कविताएं शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं.......