बुधवार, 29 जून 2016

कलम नहीं तलवार समझ .......

संकल्पित समवेत स्वरों 
को शोर नहीं हुंकार समझ 
सिर पर बांध कफन बोले 
लोर नहीं ललकार समझ 
छोड़ रुदन को साहस भर दे 
कलम नहीं तलवार समझ -
शर्तों समझौतों पर मिले हंसी 
वो प्रेम नहीं व्यापार समझ 
नम हों आँखें हों शब्द विहीन 
उस दर को संसार समझ -

उदय वीर सिंह

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