संकल्पित समवेत स्वरों
को शोर नहीं हुंकार समझ
सिर पर बांध कफन बोले
लोर नहीं ललकार समझ
छोड़ रुदन को साहस भर दे
कलम नहीं तलवार समझ -
शर्तों समझौतों पर मिले हंसी
वो प्रेम नहीं व्यापार समझ
नम हों आँखें हों शब्द विहीन
उस दर को संसार समझ -
उदय वीर सिंह
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