यादों के दीये कहाँ रख दिये तुम
देखो अंधेरा- अंधेरा हुआ है -
स्वप्नों की झांझर न बजती है आँगन
आँखें खुली तम पसरा हुआ है -
आवाक हूँ चल तिमिर गह्वरों में
कोई कह रहा है सवेरा हुआ है -
लिखता रहा हूँ जलता रहा मन
वरक उड़ रहे नीर बिखरा हुआ है -
उदय वीर सिंह
देखो अंधेरा- अंधेरा हुआ है -
स्वप्नों की झांझर न बजती है आँगन
आँखें खुली तम पसरा हुआ है -
आवाक हूँ चल तिमिर गह्वरों में
कोई कह रहा है सवेरा हुआ है -
लिखता रहा हूँ जलता रहा मन
वरक उड़ रहे नीर बिखरा हुआ है -
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (22-06-2016) को ""वर्तमान परिपेक्ष्य में योग की आवश्यकता" (चर्चा अंक-2381) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह...बहुत बढ़िया
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