आज विभिन्न सरकारी ,गैर सरकारी दूरदर्शन चैनलों द्वारा फिल्म रचना को बड़े उत्साह से दिखाया जा रहा है इस चर्चित सामाजिक फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है फिल्म के कलाकारों की चदुर्दिक प्रशंसा हो रही है ,इस फिल्म को कई प्रदेशों ने कर-मुक्त भी कर दिया है । फिल्म एक हफ्ते से सीनेमाघरों में चल रही है भरी भीड़ व आमदनी भी हो रही है ।समाचार पत्रों व मीडिया में अच्छी ख़ासी चर्चा है । फिल्म ' रचना ' में हिन्दू नायक द्वारा एक नगरबधू समीना [ कुमुदा गोस्वामी ]वह भी गैर हिन्दू है से विवाह का संदर्भ है । एक पतिता घोषित की गई औरत को नायक रविशंकर [ महेंद्र सिंह ]अपनी व्याहत बना कर उसे देह व्यापार के घृणित कार्य से मुक्त करता है । उसे समाज में सम्मान से जीने का अधिकार देता है । संकल्प लेता है
मैं आज से सामाजिक व कानूनी रूप से समीना [कुमुदा गोस्वामी ] को अपनी अर्धांगिनी स्वीकार करता हूँ । सात फेरों के द्वारा सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन देता हूँ । इसकी रक्षा व सम्मान को आंच नहीं आने दूंगा चाहे प्राण की ही आहुति क्यों न देनी पड़े । अदालत मे ही नहीं सर्व समाज में कुतूहल व हर्ष का विषय था । सार्थक चर्चा थी ,कहीं कहीं विरोध के स्वर भी थे पर नाम मात्र के ।
समीना को मजबूरीयों में देह व्यापार स्वीकार करना पड़ा ,और उसके अपनों ने ही इस दलदल में धकेला और फिर मुंह मोड लिया । वह इस घृणित कार्य में फसी रही कोई मुक्तिदाता किसी तंजिम किसी संगठन से मुक्त कराने नहीं आया । पर विवाह होने की खबर से मजहबी रहनुमाओं को दर्द होने लगा था ।.................
...........कुछ महीने बाद समाचार पत्रों मे बड़ी प्रमुखता से छपा की फिल्म 'रचना ' ने व्ययसाय के सारे रेकार्ड तोड़ दिये । फिल्म समीक्षकों ने अपनी अपनी तई अपनी समीक्षा लिखी । किसी ने आर्थिक ,किसी ने सामाजिक-धर्मिक , किसी ने सहिष्णुता किसी ने लालित्य कला की दृष्टि से सफल बताया । फिल्म चली, चर्चा में रही उतर गई । कुछ दिनों बाद एक खबर सुर्खियों में आई अभिनेता महेंद्र सिंह और उनकी पत्नी बेटी की हत्या में गिरफ्तार ।
खबर यूं थी की बेटी सपना ने एक मुसलमान लड़के से परिवार की मर्जी के बगैर शादी कर लिया था । जो समाज व परिवार को स्वीकार्य न था । और बेटी आदर्शों और शान की भेंट चढ़ गई किसी और के हाथों नहीं अपने पिता व माँ व कुटुंब के हाथों ।
फिल्म का निर्माण कल्पना में कितना सुखद आत्मीय था वही वास्तविकता के धरातल से कितना दूर कितना अबूझ । किसी के आँखों में पर्दे पर नायक रविशंकर की कलात्मकता व्यवहार बगावत आदर्श का प्रतिविम्ब था । वहीं महेंद्र सिंह का वास्तविक किरदार इतना विषम कितना क्रूर था । स्वयं अपने हाथों पुत्री सपना को उसकी पानी की मांग पर माँ बाप ने अंजली में विष दे दिया था ।
उदय वीर सिंह
मैं आज से सामाजिक व कानूनी रूप से समीना [कुमुदा गोस्वामी ] को अपनी अर्धांगिनी स्वीकार करता हूँ । सात फेरों के द्वारा सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन देता हूँ । इसकी रक्षा व सम्मान को आंच नहीं आने दूंगा चाहे प्राण की ही आहुति क्यों न देनी पड़े । अदालत मे ही नहीं सर्व समाज में कुतूहल व हर्ष का विषय था । सार्थक चर्चा थी ,कहीं कहीं विरोध के स्वर भी थे पर नाम मात्र के ।
समीना को मजबूरीयों में देह व्यापार स्वीकार करना पड़ा ,और उसके अपनों ने ही इस दलदल में धकेला और फिर मुंह मोड लिया । वह इस घृणित कार्य में फसी रही कोई मुक्तिदाता किसी तंजिम किसी संगठन से मुक्त कराने नहीं आया । पर विवाह होने की खबर से मजहबी रहनुमाओं को दर्द होने लगा था ।.................
...........कुछ महीने बाद समाचार पत्रों मे बड़ी प्रमुखता से छपा की फिल्म 'रचना ' ने व्ययसाय के सारे रेकार्ड तोड़ दिये । फिल्म समीक्षकों ने अपनी अपनी तई अपनी समीक्षा लिखी । किसी ने आर्थिक ,किसी ने सामाजिक-धर्मिक , किसी ने सहिष्णुता किसी ने लालित्य कला की दृष्टि से सफल बताया । फिल्म चली, चर्चा में रही उतर गई । कुछ दिनों बाद एक खबर सुर्खियों में आई अभिनेता महेंद्र सिंह और उनकी पत्नी बेटी की हत्या में गिरफ्तार ।
खबर यूं थी की बेटी सपना ने एक मुसलमान लड़के से परिवार की मर्जी के बगैर शादी कर लिया था । जो समाज व परिवार को स्वीकार्य न था । और बेटी आदर्शों और शान की भेंट चढ़ गई किसी और के हाथों नहीं अपने पिता व माँ व कुटुंब के हाथों ।
फिल्म का निर्माण कल्पना में कितना सुखद आत्मीय था वही वास्तविकता के धरातल से कितना दूर कितना अबूझ । किसी के आँखों में पर्दे पर नायक रविशंकर की कलात्मकता व्यवहार बगावत आदर्श का प्रतिविम्ब था । वहीं महेंद्र सिंह का वास्तविक किरदार इतना विषम कितना क्रूर था । स्वयं अपने हाथों पुत्री सपना को उसकी पानी की मांग पर माँ बाप ने अंजली में विष दे दिया था ।
उदय वीर सिंह
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