मंगलवार, 23 अगस्त 2016

धागे सुनहरे रह गए ...

भूल गए अनुबंन्धों को
धागे सुनहरे रह गए -
सुनने वाले कत्ल हुए
ले तमगे बहरे रह गए -
आदर्शों की शाला जिह्वा
आचरण में कोरे रह गए -
रिश्तों में दुर्गंध समाई
घाव छाती के गहरे रह गए -
चीख रही है बाला पथ पर
रक्षा के ढिढोरे रह गए -
छली गई है लाज अपनों से
कलाई पर डोरे रह गए -
काट कोख में बेटी फेंकी
टुकड़ों के बोरे रह गए -

 उदय वीर सिंह

कोई टिप्पणी नहीं: