गुरुवार, 25 अगस्त 2016

अव्यवस्था से विद्रोह था

कन्हैया का कंस 
कोई गैर नहीं था 
कंस से मुरारी का कोई 
वैर नहीं था
जो पांडव सगे थे तात के 
कौरव भी पराए न थे 
कुंती से नेह था 
तो गांधारी से द्रोह न था 
सेना को दंभ था वीरता का 
मोहन का अकेला संकल्प था 
चिंता थी गोपियों की 
तो द्रौपदी भी उघारी न हुई 
पार्थ का सम्मान था 
तो कर्ण का औचित्य था 
द्रोण और भीष्म का संकल्प भी 
संवेदना से ऊपर न हुआ 
मुरारी मनमोहन का
एक लक्ष्य थ 
मानवता से ऊपर कुछ भी नहीं 
अमानवीय व्यवस्था से 
श्री कृष्ण का
विद्रोह था ....... । 

उदय वीर सिंह 










2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-08-2016) को "नाम कृष्ण का" (चर्चा अंक-2447) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

श्रीकृष्ण के कार्यों का महत्व न समझ ,सामान्यतः लोग मनमानी व्याख्या करने पर तुल जाते हैं .