कन्हैया का कंस
कोई गैर नहीं था
कंस से मुरारी का कोई
वैर नहीं था
जो पांडव सगे थे तात के
कौरव भी पराए न थे
कुंती से नेह था
तो गांधारी से द्रोह न था
सेना को दंभ था वीरता का
मोहन का अकेला संकल्प था
चिंता थी गोपियों की
तो द्रौपदी भी उघारी न हुई
पार्थ का सम्मान था
तो कर्ण का औचित्य था
द्रोण और भीष्म का संकल्प भी
संवेदना से ऊपर न हुआ
मुरारी मनमोहन का
एक लक्ष्य थ
मानवता से ऊपर कुछ भी नहीं
अमानवीय व्यवस्था से
श्री कृष्ण का
विद्रोह था ....... ।
उदय वीर सिंह
कोई गैर नहीं था
कंस से मुरारी का कोई
वैर नहीं था
जो पांडव सगे थे तात के
कौरव भी पराए न थे
कुंती से नेह था
तो गांधारी से द्रोह न था
सेना को दंभ था वीरता का
मोहन का अकेला संकल्प था
चिंता थी गोपियों की
तो द्रौपदी भी उघारी न हुई
पार्थ का सम्मान था
तो कर्ण का औचित्य था
द्रोण और भीष्म का संकल्प भी
संवेदना से ऊपर न हुआ
मुरारी मनमोहन का
एक लक्ष्य थ
मानवता से ऊपर कुछ भी नहीं
अमानवीय व्यवस्था से
श्री कृष्ण का
विद्रोह था ....... ।
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-08-2016) को "नाम कृष्ण का" (चर्चा अंक-2447) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
श्रीकृष्ण के कार्यों का महत्व न समझ ,सामान्यतः लोग मनमानी व्याख्या करने पर तुल जाते हैं .
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