शनिवार, 27 अगस्त 2016

मजबूरन .....

मजबूरन .....
वो चली जाती है अपने गंतव्य
दो वक्त की रोटियों का हवाला देकर -
कुछ ख्वाब में रहते है ,कुछ थाल में
वायदों की पोटली से बच्चों को निवाला देकर -
शंसय है कोई खा न ले भेड़िया निवालों संग
बंद कर जाती है किवाड़ों को ताला देकर -
लौटी थक मौन छुपाती मुंह की दुर्गंध बच्चों से
आज किसी ने लूटा है शराब का प्याला देकर -
उदय वीर सिंह

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