मंगलवार, 20 सितंबर 2016

हीमोफीलिया [ मृत्यु घाव ]

    तुम्हें हर हाल में अपनी  वास्तविकता स्वीकार करनी होगी ,अपने अस्तित्व का आंकलन व आत्म निरीक्षण करना होगा अपने  नैशर्गिक स्वभाव को बचाए रखना होगा जिसमे  सम्मान विकास व खुशियों के सार तत्व निहित हैं । तुम्हें उन्माद से दूर जाना होगा, मानवता  के मार्गों की पहचान व यथार्थ की वीथियों का वरन करना ही  तुम्हारे अस्तित्व व स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है । सूरज ने बड़ी आत्मीयता से चाँद को समझाने  का हितकारी प्रयास किया था।
तुम मुझे समझा रहे हो या आतंकित कर  रहे हो सूरज ! चाँद ने तमतमाते हुए चेहरे पर अस्वीकार्य भाव लाते हुये कहा ।
मैं तुम्हारा वरिष्ठ हूँ ,तुम्हारे बुरे भले का ख्याल रखना मेरा नैतिक दायित्व है ,जो अच्छा समझा मैंने कहा । मेरी कोई दुर्भावना नहीं । आगे तुम्हारी मर्जी । आखिर तुम चाँद हो ....
क्या अर्थ है तुम्हारे कहने का । चाँद ने प्रतिवाद किया ।
आशय सीधा है सपाट है तुम्हें चमकने के लिए किसी सूरज की आवश्यकता होगी । सूरज ने कहा
है न  ?
आत्म निरीक्षण करो ! ,सिर्फ  जुनून ,उन्माद हठ-धर्मिता  हत्या /आत्महत्या  की सनक के सिवा तुम्हारा अपना क्या है  ? अपने विवेक व ज्ञान प्रकाश के वातायन को खोलो , सुप्रभात होगा तुम्हारी अंधेरी रात का । सूरज अतीव शांत भाव से चाँद को संबोधित कर रहा था ।
 तुम मुझसे बड़े हुये तो इसका अर्थ यह नहीं की मुझे अपमानित करो  ! बंद कर अपना प्रलाप ,मुझे कुछ नहीं सुनना । तुम को अपने दंभ का परिणाम भुगतना ही होगा , अब बहुत हुआ तुमने मेरा अधिकार सम्मान मेरा सर्वस्व छिना है ,मैं तुम्हें कदाचित क्षमा नहीं कर सकता । मात्र एक विकल्प है "या तुम्हारा अस्तित्व या मेरा ।
  सुच्याग्रम न दास्यमि बिना युद्धयेन ....  ।
   दंभ में भर चाँद  ने  चुनौती पूर्ण अट्टहास किया ।
    चाँद मैं अनिष्ट की  भविष्यवाणी नहीं कर रहा ,पर आज तुम्हें यथार्थ से परिचित करा देना चाहता हूँ ।अगर तुममें  थोड़ा धैर्य है ,सुन सको  तो सुनो । सूरज ढलती शाम की लालिमा में अवरक्त मुख लिए एक अशोद्ध्य प्रलेख पढ़ने को उद्दत था ।
  चाँद यह प्रलाप नहीं प्रलेख है आत्मसात करो या परित्याग अब तुम्हारे ऊपर है ।
तुम्हें हीमोफीलिया नामक रोग है ,जिसकी चिकित्सा नहीं । एक बार घाव बन जाने के बाद , मृत्यु तक खून बहता रहता है । हम सबने तुम्हारा इसका ख्याल रखा है एक खरोंच भी नहीं आने दी ।परिणाम स्वरूप ! तुम अहंकारी व उदाँड़ता की हर सीमा पार कर गए ।जिसे तुमने अपनी वीरता समझा  वह ,हमारी सहनशीलता है ।
    तुम्हारे बोये कांटे,व कंटीली झाड़ियाँ ही  तुम्हें  तुम्हारे निश्चित गंतव्य तक पहुचाने को पर्याप्त हैं , उसमे किसी अन्य  प्रयासों की किंचित आवस्यकता नहीं । किन किन घावों पर  अपने हाथों को  रखोगे ,जब घाव हजारों हों । और हाथ सिर्फ दो ही ।  सूरज का  प्रबोधन  गांभीर्य लिए प्रबल प्रभावी था ।
एक लिखा प्रलेख चाँद की ओर बढ़ाया ,चाँद विस्फारित नजरों से सूरज की ओर देख रहा था ।

उदय वीर सिंह

कोई टिप्पणी नहीं: