रविवार, 28 फ़रवरी 2016

लंबरदार हो गए हैं -

कुर्बान हो गए राष्ट्रवाद पर अमर सपूत ,
गद्दार हो गए हैं -
जख्म जिंदा हैं सितम के तन पर दाग बनकर, 
दागदार बन गए हैं 
जिनको जाति - धर्म फिरके ,ही प्यारे थे
खुद्दार बन गए हैं-
जो वफादार थे फिरंगियों के, देश गौड़ था
वफादार हो गए हैं -
जिनकी उठी कलम दुश्मनों की शान में,
कलमदार हो गए हैं-
जिसने देश को मंदिर नहीं, पायदान समझा 
लंबरदार हो गए हैं -
वतन तो वतन, द्रोह है इंसानियत से जिन्हें ,
वतन के ठेकेदार हो गए हैं -

उदय वीर सिंह 



शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

शीशे जो सच दिखाते ....

शीशे जो  सच दिखाते  पत्थर उठाते हो 
 सितम जो बयां हुये तो शातिर बताते हो -
जख्मों से दर्द छलका तो शायर बताते हो 
हो बेदम गिरा जमी पर कायर बताते हो -
हकपसंद हो गया तो मोहाजिर बताते हो 
दहशत में है तसव्वुर नश्तर चलाते हो
उजालों से यारी इतनी हो गयी उदय 
जानिब महफिलों के बेबस का घर जलाते हो -


उदय वीर सिंह

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

हे संसद !

हे संसद !
हे संसद तूँ स्वस्थ रहे स्वच्छ रहे निशिवासर तूँ
संविधान की गुरुता का देख सके विधि आदर तूँ
गंतव्य बने स्तम्भ बने मंतव्य बने हित चिंतन का
राष्ट्र निरंतर प्रणीत हो पथ्य-पाथेय की गागर तूँ -
***
स्थान पाये देश- द्रोह घाती प्रतिघाती विध्वंसक
रक्षार्थ भारत की भूमि अस्मिता बनी रहे उद्धारक तूँ
आशाएँ धूमिल हों हठ कामी वंचक द्रोही उर की
समता स्नेह जीवन मूल्यों की अखंड राशि का सागर तूँ -
उदय वीर सिंह

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

त्याग आदर्शों के नारे आज भी हैं

धर्म और संस्कारों के हरकारे आज भी हैं 
त्याग आदर्शों के प्रखर  नारे आज भी हैं 
ढूंढते हैं दर -बदर एक  जिंदगी का आसरा
हमवतन हैं मुफ़लिसी के मारे आज भी हैं
***
गुम है तूती की आवाज नक्कारखानों में
फासले रखने वाली दीवारें आज भी हैं 
पैगाम देना था इंसानियत हकपरस्ती का 
इंसान को बांटने वाली मीनारें आज भी हैं -
 ****
किसी ने पूछा नहीं तारुफ़ इंसानियत का
दरख्त दरिया समंदर सारे आज भी हैं 
इंसान से इंसान कितना अजनवी हो चला
धरती आसमान और तारे आज भी हैं - 


रविवार, 21 फ़रवरी 2016

रहती जहां है आशा ...

रहती जहां है आशा भगवान भी वहीं है
जीवन जहां बसा है शमशान भी वहीं है -
त्राशदी की बारिस आकार जब भी लेती
तूफान जहां बसा है मकान भी वहीं है -
हर रंग हैं सुहेले ,बदरंग नहीं है दुनियाँ
तिमिर जहां बसा है अंशुमान भी वहीं है -
हम कितने बदल गए हसरतों की दौड़
बदली नहीं है धरती आसमान भी वहीं है -
संवेदनाओं का मरना पत्थर को है लजाना
बूत भी वहीं खड़ा है इंसान भी वहीं है -

उदय वीर सिंह






शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

कलफ लगाते रह गए

वो मजदूर थे
मुल्क सँवारते रह गए
वो रणवीर थे
सरहद संभालते रह गए -
वो अन्नदाता धीर थे
हल चलाते रह गए -
जन भूख थी पहाड़ जैसी 
अन्न उगाते रह गए -
वो सरफरोश थे
सर कटाते रह गए
जब भी आई आंच वतन पर
जीवन लुटाते रह गए -
कुछ बतफ़रोश थे की सिर्फ
शेख़ी बघारते रह गए -
नंगे रहे वतनपरस्त
गद्दार कलफ लगाते रह गए -
उदय वीर सिंह


गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

हर रचना कालजयी नहीं होती...

हर डाल छुई- मुई नहीं होती
हर शाम सुरमई नहीं होती -
कृत कथ्यों  को गुनना होगा
हर बात आई गई नहीं होती -
असफलतों के भग्नावशेष भी है,
सफलताओं  के पिछवाड़ों में
संयम उद्योग सदैव निषेचित हैं
कभी कर में जमी दही नहीं होती -
मन मानस रचता निज भावों को 
हर रचना कालजयी नहीं होती -

उदय वीर सिंह



मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

जब भाषा दरबारी ,दैवीय....

जब भाषा दरबारी जनमानस से दूर 
दैवीय अवतारी हो जाती है
तब भाषा भिखारी हो जाती है -
जब भाषा अश्लीलता
मनोरोगियों की छांव रहती है
भाषा व्यभिचारी हो जाती है
जब भाषा प्रवाह के साथ होती है
खोकर अस्तित्व बेचारी हो जाती है
जब मदहोशो के पाँव इश्क के गाँव
रहती है बाजारी हो जाती है -
शब्द उसके होते संवाद उसके
भाषा उघारी हो जाती है
प्रेम मोद मद की पहचान बन जाए
भाषा बीमारी हो जाती है -
समझती है मर्म उकेरती है प्रछन्नता
देश काल दृष्टि की संयोजक बने
भाषा अर्चना की अधिकारी हो जाती है -
उदय वीर सिंह


रविवार, 14 फ़रवरी 2016

संकल्प को विकृत मत करो ...

प्रेम-दिवस की शुभ कामनायें
वैलेंटाइन पाक स्वीकारोक्ति है भौड़ा प्रदर्शन नहीं
विकृत मत करो !
****
किसी आश को विस्वास
मिल जाए तो अच्छा है
गहन तिमिर को उजास
मिल जाए तो अच्छा है
प्यार निजी संवेदना है 
नुमाइश हो तो अच्छा है
माण हो वैलेनटाइन का 
अपमान हो तो अच्छा है -


उदय वीर सिंह

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

अभिव्यक्तियों के नाम पर-

गुलशन में कांटे उग रहे माली कही जा सो रहा 
सिरफिरे आजाद क्यों हैं अभिव्यक्तियों के नाम पर-
ये वतन तन्हा नहीं वतनपरस्ती नाल है
हम छोड़ दें ईमान कैसे अभिव्यक्तियों के नाम पर -
कौन है आजाद ,किसको आजादी नहीं
क्या देश को भी बाँट दे अभिव्यक्तियों के नाम पर-
मिली पनाह उनको भी जो दर- बदर भटकते रहे 
वो दे रहे हैं गलियाँ अभिव्यक्तियों के नाम पर -
ये वतन कभी लाचार था न आज भी लाचार है 
गद्दारी स्वीकार कैसे अभिव्यक्तियों के नाम पर -

उदय वीर सिंह 






बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

जले आग कहीं तो चूल्हों मे जले -

न हृदय मेँ जले , न उदर मेँ जले
जले आग कहीं तो चूल्हों मे जले -
दीप मस्जिद मेँ जले मंदिर मेँ जले
जले पहले जो कहीं वो घरों मेँ जले -
रंग काँटों का भी वैसे बुरा नहीं होता
खुशबू मिले कहीं तो वो फूलों मेँ मिले -
किताबों मेँ मिले न खानकाहों मेँ मिले
इल्म का दर माँ की पनाहों मेँ मिले -

उदय वीर सिंह



फैसले नहीं मिलते


जख्म पाँवों के , काफिले नहीं गिनते
हौसलापरस्तों से काफिले नहीं बनते -
शिकस्त देने का अंदाज़ अपना अपना 
कभी फकीर को , रकीब नहीं मिलते -
फलसफे भी कितने अजीब हैं जिंदगी के
उदय मुर्दों को कभी सलीब नहीं मिलते -
दिलो दर्द के मुकद्दमों का क्या करे मुंसिफ़
चाहता तो है पर फैसले नहीं मिलते -





उदय वीर सिंह


शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

हर रोज मेरी ईद है

गा रहे हैं गीत ए ,मेरे हमनवा नसीब है
कस्रे मोहब्बत पास है हर रोज मेरी ईद है -

गुल खिलेंगे हर डाल पर गर गुलशन रहा
भूल जाएंगे ख़िज़ाँ के वस्ल को उम्मीद है -

हम सिकंदर हुये हमसफर हैं हम कदम
फतह हमारी है लिखी गर दौर भी रकीब है -

गुरबती गर साथ है तो हौसला भी कम नहीं
डूबा सफ़ीना गम नहीं साहिल अब करीब है -

उदय वीर सिंह


मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

बांधे बेटा पीठ

बांधे बेटा पीठ शीश पर ईटा
भूख नदी तट की  पनिहारन
कुछ कर्ज प्रसव के पूर्व लिया
कुछ वसन व्याधि वर के कारण-
सिल करके अधरों की पीड़ा 
आशा की चादर बुनती है -
हरने को जीवन का वेदन 
निज शीश ईंट को ढोती है -b
कुछ यतन दूध का करती है 
चुप चाप दंश को सहती है 
गोंद में बालक को होना था 
वह पीठ बंधा अकुलाता है 
जिसमें पूत किलकारी देता  
उस उरमें राख भर जाता है 
गिरी ईंट जो कर से छूटी
परिणाम सोच कर डरती है -
सूखी छाती दूध पलायित 
भूखा पेट जले  अंगारों से 
आंखों से गंगा यमुना सूखी 
ऊंची पीर हुई पहाड़ों से -
टीसता वेदन प्रसव अभी 
समनार्थ भूख श्रम करती है
बदली फेरों वाली धोती
बदले हैं शीत बसंत कई 
पैबंदों ने आकर घेरा डाला 
सूती कुर्ती अब जर्जर हुई -
 है ठंढा चूल्हा बटलोई खाली 
कुछ प्रश्न निलय से करती है
भाग्य-प्रबल, पूर्व का लेखा 
दया- पात्र जब तक याचन 
जब शब्द निकले उदद्गारों में 
ये जग कहता भठिहारन 

उदय वीर सिंह