शनिवार, 30 अप्रैल 2016

तनया


चर्चा बनी ' तनया ' के कुछ मुक्तक आपके अवलोकनार्थ आप की प्रतिक्रिया हमारा पुरस्कार होगी -
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श्री गीता हैं , पुराण हैं , हमारी बेटियाँ
पूज्य ग्रन्थों का संज्ञान हैं हमारी बेटियाँ
पूजा का प्रसाद हैं , संकल्प की संवेदना 
कई जन्मों का सम्मान हैं हमारी बेटियाँ -
कण कण को टटोलतीं सोना बनाती हैं
पारस सी अनमोल हैं हमारी बेटियाँ -
पथ वेदना भी पूछती जब ठौर न मिला
आनंद का संकल्प हैं हमारी बेटियाँ -
लिख रहीं संवाद जो लिखे नहीं गए
भाषा भी और लिपियाँ हमारी बेटियाँ -
अर्थ व विमर्श हैं प्रतिवाद जब खड़े हुए
प्रसून भरी वीथियाँ हमारी बेटियाँ - 

प्रज्ञा व ज्ञान का लिख रहीं हैं भाष्य वो
मूल्यों का प्रतिदर्श है हमारी बेटियाँ
निष्ठा आचार का स्वरूप भव्य साक्ष्य हैं
हर प्रश्न का निष्कर्ष हैं हमारी बेटियाँ -
वनवास का भी दंश अवसर में ढल गया
विषमता में धर्म अपना निभाई हैं बेटियाँ
दुरूह पथ अभिशप्त, वेदन भी था अकथ
विनम्रता की प्रतिमूर्तियाँ हमारी बेटियाँ -
बेटों की लोहड़ी का उत्सव मना लिया
यह मान कर की होती पराई हैं बेटियाँ
बेबस हुये कदम स्वजन छोड़ कर चले
रिस्तों के हर रश्म को निभाई हैं बेटियाँ -
पांडित्य का प्रकाश प्रज्ञा निवास अर्चना
सुख की श्री निवास हैं हमारी बेटियाँ
अध्यात्म की जिजीविषा पुनिता हैं कर्म की
प्रणेता हैं सद्दकर्म की हमारी बेटियाँ -
मंजरी विस्वास की मंजूषा आचार की
प्रिय परिमल प्रसून की हमारी बेटियाँ
ओम की अभिषेक है सुन्यतामें गूंज हैं
अविवेक में प्रबोध हैं हमारी बेटियाँ -

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

सुखद क्षण [लोकार्पण ]



महामहिम डॉ हामीद अंसारी जी उप राष्ट्रपति भारतीय गणतन्त्र के अनमोल शब्द जो उनके बे-मिशाल व्यक्तित्व, विशाल हृदय व विषय मर्मज्ञता की अमिट छाप छोड़ गए । मेरे लिए सौगात व निधि बन कर हृदय में संचित हो गए ।
- उदय वीर सिंह जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं ।
- कलम रुकने न पाये लिखते रहिए ।
- कलमकार किताब देता नहीं, उससे किताब मांगी जाती है ।
[और महामहिम ने अद्वितीय विनम्रता से अपने दोनों हाथ फैला कर किताब ली जो मैंने अपने जीवन में सुना तो था आज प्रत्यक्ष पाया । जीवन अविभूत हुआ ]
- उदय वीर सिंह जी मैं इन पुस्तकों को लेखक व पाठक दोनों की नजरों से पढ़ूँगा ।
- एक इंसान व साहित्यकार दोनों रूपों में आप एक से दिखते हैं ।
- आप से समाज व देश को बहुत आशाए हैं ।
-आप को बहुत बहुत मेरी शुभकामनाएं व बधाइयाँ ।
इस थोड़ी सी मुलाक़ात में विषद अर्थ लिए महामहिम की आशीष के सद्द्वचन मेरे लिए धरोहर ही तो है ।
आप से अपनी खुशी व हृदय के उदद्गारों को साझा कर अभिभूत हूँ मित्रों ।
उदय वीर सिंह

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

महामहिम उप राष्ट्रपति डॉ हामिद अंसारी द्वारा लोकार्पित हुईं मेरी पुस्तकें

     स्नेहिल मित्रों ! पाठकों शुभचिंतकों मेरे प्रिय परिजन व सगे संबंधियों आप सबके स्नेह आशीष का ह्रदय से कृतज्ञता पूर्ण आभार व्यक्त करता हूँ मैं इस योग्य नहीं की आपके अनमोल प्यार का मूल्य चूका सकूँ . मैं निशब्द हूँ आपकी संवेदना विभूति को संजोकर .
       आज 26-04-2016 मेरी नवल कृतियां " निर्वाण " व् "तनया " का लोकार्पण महामहिम डॉ हामिद अंसारी उप- राष्ट्रपति भारतीय गण के हाथों राज्यसभा में सम्पन्न हुआ .
पुस्तक तनया 260 मुक्तकों से बेटियों के छुए -अनछुए पहलुओं को निरुपित करने का प्रयास है सुधि प्रकाशक यश पब्लिकेशन दिल्ली ने इसे प्रकाशित किया है ,
' निर्वाण ' कहानी संग्रह मेरी अमूल्य कृतियों में है . कितना सफल हुआ हूँ यह आप सब पर छोड़ता हूँ , यह ख्यातिलब्ध प्रकाशक विश्व हिंदी साहित्य परिषद द्वारा प्रकशित यह कृति आपकी सेवा में है . प्रकाशक आशीष कंधवे जी का ह्रदय से आभार .आप मानबिन्दुओं सुभेक्षुओं का पुन आभार .
उदय वीर सिंह

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

धरती बचाओ ....

बचाओ ! धरती को, सृष्टि को जीवन को ......
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तूझे खेलना तो  है तो बेशक खेल 
मगर तू 
अपना ही नहीं पूरी कायनात मिटा रहा है -


उदय वीर सिंह 

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

कायम रवे मादरे वतन .....

सानू  यकीन हैगा  मसिया दी रात दी सवेर होवेगी
मसले किन्ने हो जाण बड्डे  ओसदे निबेड़ होवेगी
हर अमीरों गरीब दा जज़्बात वतन दी हिफाजत होवे
वीर कायम रवे मादरे वतन, ताहीं  तेरी खैर होवेगी -
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ਸਾਨੂ ਯਕੀਨ ਹੈਗਾ ਮਸਿਆ ਦੀ ਰਾਤ  ਦੀ ਸਵੇਰ ਹੋਵੇਗੀ
ਮਸਲੇ ਕਿੰਨੇ ਬਡੇ ਹੋ ਜਾਣ ਓਸਦੇ ਨਿਬੇੜ ਹੋਵੇਗੀ -
ਹਰ ਅਮੀਰੋ ਗਰੀਬ ਦਾ ਜਜਬਾਤ ਵਤਨ ਦੀ ਹਿਫਾਜਤ ਹੋਵੇ
ਵੀਰ ਕਾਯਮ ਰਵੇ ਮਾਦਰੇ ਵਤਨ ਤਾਹੀਂ ਤੇਰੀ ਖੈਰ ਹੋਵੇਗੀ -

उदय वीर सिंह

सोमवार, 18 अप्रैल 2016

टुटे हुए शाहिल का.....

टुटे हुए शाहिल का शजर हो गया हूँ
अपनी गुमनामी की खबर हो गया हूँ -

अपनों ने रक्खा मुझे पलकों की छांव में
अपनों के हाथों दर- बदर हो गया हूँ -

जिंदगी की शाम में अब सहरा की रेत है ,
अनजानी मंजिल का सफर हो गया हूँ -

उदय वीर सिंह


शनिवार, 16 अप्रैल 2016

ताआरुफ़ की एक नजर .....

मैं भी चाहता हूँ हंसू मुस्कराऊँ
हंसने की कोई वजह दीजिये तो -

मैं भी चाहता हूँ एक आशियाना
रहने की कोई जगह दीजिये तो -

मुखातिब हूँ मैं उदय तेरी महफिल
तारुफ़ की एक नजर दीजिये तो -

पैरों के छाले अब चलने न देते
ठहरने को कोई शजर दीजिये तो -

उदय वीर सिंह

बुधवार, 13 अप्रैल 2016

आप जज़्बात रखते हैं

हो सकता है हमसे इत्तेफाक रखते हों
मुझे खुशी है कि आप अपनी बात रखते हैं -
आप क्या सोचते हैं यह आप पर छोड़ते हैं
खुशी है कि  आप मनुष्यता की जाति रखते हैं -
गम और खुशी के अपने पैमाने होते हैं दोस्त
मुझे खुशी है कि  आप जज़्बात रखते हैं -
कुछ ठहरा नहीं मेरे पास बनता गया माजी
मुझे खुशी है कि आप सबका हिसाब रखते हैं -

उदय वीर सिंह




बैसाखी [The Yug testament ]

बैसाखी ! { The yug testament }
1- आज के दिन ही एक आध्यात्मिक अंतहीन गौरवमयी प्राणवायु का संचार हुआ खालसा पंथ का सृजन सिख पंथ के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के द्वारा । जातिविहीन राष्ट्र सेवक वालिदानी जत्थों [ खालसा ] का निर्माण आकार लिया । जिसने भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में अपनी पहचान व गौरवमई कृत्यों से आज भी देदीप्यमान है ।
2 - अकेला अभूतपूर्व अद्भुत, हुआ न होगा विचार जन्म लिया -
" आपे गुरु चेला '
3 - समाजवाद का अभ्युदय हुआ जिसके संदर्भों में आज का संविधान लक्षित होता है ।
4 - अविचल राष्ट्रवाद को प्रखर दिशा मिली
5 - सामाजिक क्रांति का सूत्रपात व बहस को नए आयाम मिले ।
6 -धार्मिक उन्मादियों व हठवादियों का पतन आरंभ हुआ हुआ । मानव मात्र को मनुष्य होने का अहसास हुआ ।
7 - भारतीय जागरण काल ने सर्वोदय का अविवादित नेतृत्व पाया ।
8 - जालियाँ वाला हत्याकांड व अन्य भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों का वाचक बना
9 - सामाजिक समरसता व आर्थिक उन्नयन का प्रतीक है ।
10- अंतिम सूत्र वाक्य हम एक हैं ।
बैसाखी सदृश तिथियों का आगमन युगों में कदाचित होता है ।
उदय वीर सिंह

रविवार, 10 अप्रैल 2016

अभिनेता [ कहानी ]

18 -       अभिनेता
    ' अयंनिजपरोवेतिगणना लघुचेतसाम,उदारचरीतानाम तू वसुधैव कुटुंबकम ' अर्थात यह हमारा है यह तुम्हारा है का विचार क्षुद्र मानसिकता के व्यक्ति करते हैं ,उदार चरित्र के लिए पूरी धरती ही एक कुटुंब [परिवार ] की तरह है । 
 जहां नारियों की पूजा होती है देवता वहीं निवास करते हैं,  जीवन की विशालता हमारी सनातन संस्कृति है इसका उपादान हमारी व्यवस्था है साध्य मोक्ष, साधक ,सनातनी है । विकार त्याज्य, अनुकूलन शीतलता, प्रतिकूलन ज्वाल है, जिसका समन अपरिहार्य है । आज्ञानिषेध सर्वथा अक्षम्य अपराध , प्रदत्त व्यवस्था सम्पूर्ण और संतोष जनक सर्वथा स्वीकार्यता ही अनुमन्य है । ये हमारे सूत्र वाक्य 
जीवन के सार्थक सोपान हैं जिन्हें वरण किए बिना मनुष्य मात्र अधूरा है । 
     जीवनशाला मधुरता की मंजूषा हो ,मद्य का सर्वथा निषेध करती हो , संस्कारों की धात्री सुविचारों की सेविका कर्म की संरक्षिका विभेद रहित सर्वजन भाव  को सरलता से निषेचित करे पल्लवित पुष्पित करे । पूज्यनीय परम आदरणीय होगी । ग्राह्य होगी । 
    जीवन का गौरव उच्चतम सोपान नहीं निम्नतम सोपान ही हो जहा से आलोक आकार पाता है । प्रतिकार निराशा को जन्म देता है निराशा विप्लव और अंत को निरूपित करता है । सदेव स्नेह संकलित हो स्निग्धता विमोचित हो ,मुक्ति सदाचार का प्रवाह सुरसरि की तरह अमिय तत्व को संचारित करे । यही भारतीयता का भाष्य और दर्शन है नित्य पढ़ा जाए जीवन प्रतिदर्श बनेगा । 
   श्रीमान उद्धारक का प्रवचन  कट के बाद विराम पाता है ।  निर्देशक इस संवाद और दृश्यांकन से संतुष्ट हो इस फिल्म का अंतिम चरण समाप्त कर दृश्यांकन समाप्ती की घोषणा करता है । 
    चल चित्र कर्मी विराम के बाद किसी दूसरी विधा के चित्रण के लिए अपने को नियोजित कर रहे थे । निर्देशक अपनी चल चित्र मंडली को किसी दूसरी पटकथा के दृश्यांकन हेतु तैयार करता है । शायद यही  उसकी नियति है । 
 अब कथार्थ  ' मुक्ति संदेश " चल चित्र घरों में प्रदर्शित की जा रही है मुख्य अभिनेता श्री गंगाधर जी हैं । कथार्थ जनता को बहुत प्रभावित कर रही है । भीड़ उमड़ रही है देखने को क्या है इस कथार्थ में ।कौतूहल का विषय बन गया है । धर्म अर्थ मोक्ष सब कुछ निहित है  
       पट-कथा  के नायक श्रीमान उद्धारक [ वास्तविक नाम  गंगाधर ] जनसामान्य व सनातनी किरदारों को जन सामान्य के स्वाभाविक आवरण में जी जन सामान्य के हृदय में आदर्श,व  आधार स्तम्भ बन गए थे । जनता जनार्दन उन्हें अपना भगवान समझने लगी थी ।  तथाकथित मूढ़ मति जनता के उद्धारक ,विचारक और वेदना निवारक  से हो गए थे । इनके अभिनीत कथार्थ [फिल्म ] जनमानस टूट कर देखती  विक्षिप्तता की सीमा तक । 
   श्रीमान आपने ईस  कथार्थ में जीवन डाल दिया है । आपका अप्रतिम अभिनय देखने को मिला इस सफलता को कैसे लेंगे । कथार्थ पत्रकार ने अभिनेता गंगाधर जी से प्रश्न किया । 
भई ज्ञान का मैंने प्रयोग किया है परिणाम सामने है  । गंगाधर जी अपने साक्षात्कार में पत्रकार  महोदय को बड़े गर्व से बताया । 
    आपने कथार्थ को उसके मूल में जिया है । कैसे कर सके ? मसलन कथार्थ का मुख्य पात्र सनातनी है फिर आधुनिक प्रतिदर्श बंनता है जिसका सीधा अर्थ अपनी संस्कृति का खुला प्रतिरोध हुआ , क्या दोनों धाराएँ एक साथ चल सकती हैं ? पत्रकार जी ने पूछा ।  
   मेरा अभिनय बहुत सराहा गया  इसके लिए शुक्रिया ।  गंगाधर जी बोले 
श्रीमान मेरा प्रश्न यह नहीं है ।मैं जीवन दर्शन  की  बात कह रहा हूँ । पत्रकार जी ने स्पष्ट किया 
  मैं ज्ञान विज्ञान  सामान्य ज्ञान का विद्यार्थी नहीं हूँ मैं समाज को दिशा देने वाली फिल्म करता  हूँ  गंगाधर जी ने बताया । 
   देखिये कथार्थ की बात मुझे समझ नहीं आती निर्देशक ने जो कहा मैंने कह दिया ।दर्शन देवी के हो देवता के हो या जीवन के हों दर्शन जिसे करना हो वो  करे हमें क्युओन घसीटते हैं । जाकर आप भी दर्शन करिए और बताइये 
   समाज धर्म के बारे में की आपका मत है पत्रकार जी ने पूछा 
जो समाज में ,जिस समाज में रहता है उसकी बात करता है वो जाने मुझे इससे क्या लेना देना । मुझे धन से मतलब है, मिल रहा है  गंगाधर जी ने साफ शब्दों में कहा । 
  भाषा और साहित्य से आपका सरोकार  पत्रकार ने पूछा 
ये क्या बाला है जी !   आप को मालूम है की कितना  कीमती समय निकाल कर हम इन कार्यों के लिए  आते हैं ,हमको एक एक मिनट का दाम मिलता है और आप्प हैं की फालतू चीजें पुछे  जा रहे हैं ....  खीझ कर गंगाधर जी ने कहा । 
महोदय ये प्रश्न हमारे देश समाज विकास से सरोकार रखते हैं , क्षमा चाहते हैं आपको बुरा लगा । 
समाज ,धर्म ,साहित्य ,भाषा के  साक्षात्कार सहयोग के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद महोदय  । पत्रकार ने आभार व्यक्त किया और साक्षात्कार का सजीव प्रसारण बंद हुआ । 
      कुछ दिन बीते  शाम का समय गंगाधर जी पुलिश की हिरासहत में हैं आयकर , अवैध सस्त्र, महिला उत्पीड़न अश्लीलता के आरोप लगे  हैं विभिन्न धाराएँ लगाई गईं है । 
पत्रकार उनका पक्ष जानना  चाहते हैं 
ये क्या हुआ आपके साथ गंगाधर जी ? पत्रकार ने पूछा 
कुछ नहीं  हम निर्दोश हैं 
आप् का  समय तो बहुत कीमती है दाम से बंधा हुआ । फिर इस समय का क्या होगा ? 
हमने कहा न सब निर्देशक जानता है हम उसके मातहत हैं 
आप् का  महान ज्ञान जागृति संस्कार आदर्श का क्या होगा ..... पत्रकार ने पुनः पूछा 
निर्माता निर्देशक के हाथ .... मायूष दबी आवाज आई । 
जी श्रीमान !  जनता सब जान रही है । आपको भी और आपके किरदार को भी । पत्रकार ने शुक्रिया कहा 
पुरानी कहावत चरितार्थ हो रही थी  - ' मूर्ति  लादे पीठ गधा करे गुमान ' कितना सत्य  है । 

उदय वीर सिंह 






   
  

छक्कों के संग हँसती बाला ....

सदा आईपीएल फले फूले
आवाम मरे तो क्या हुआ -
उतरे स्वर्ग अमीरी महफिल
किसान मरे तो क्या हुआ -
सींचो अपनी सड़क चौबारे
जीवन उजड़े तो क्या हुआ -
खेत खलिहान किसान दहकता
गाँव शमशान हुए तो क्या हुआ -
छक्कों के संग हँसती बाला
भारत रोये तो क्या हुआ -

उदय वीर सिंह

लाचार मौत से सौदा किया -



कौन चाहता खेती -बेटी न फले फ़ूले
अभिशप्त लाचार मौत से सौदा किया

फासले कायम रहें ईमानवालों से बेईमानों ने नसीब को पैदा किया -

नाकामियों के डर से शमशीर छोड़ी

जंग से पहले हार को सिजदा किया

लिखते रहे नसीब औरों की बेखौफ

इंसानों इंसानियत से ही पर्दा किया

उदय वीर सिंह

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

हम किस दौर के समंदर हैं -

गजल इश्क में डूबी मिलती है
बनती गई है कविता दरबारी
अभिव्यक्ति बंधक मिलती है
निजता भी कितनी सरकारी है
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हम किस दौर के समंदर हैं उदय
दरिया गंदी है बादल तेजाबी है
हवाओं में है रसायन घुला हुआ
समाज में बगदादी है कहीं नाजी है -
***
जुमलों के दौर में यथार्थ सिसकता है
जीवन के मसले अभिशप्त दग्ध
बेबस हम आज प्रतीक्षित वहीं खड़े हैं
आँचल में आई तो कोरी बयानबाजी है-
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उदय वीर सिंह 


रविवार, 3 अप्रैल 2016

प्रीत का पंछी ...( दोहों के द्वार )

खून प्यासा खून का, एक ही रंगत होय
बने नगीना नेह का सज्जन संगति होय -
जीवन में बहु शाम है हर भोर चंगेरी होय
विस्वास भरे संकल्प लो दोनों अवसर होय -
टूटा नेह दरख्त से पर्ण उड़ उड़ ढूंढे ठौर
टूटी आश भरोश की अंधड़ के बल ज़ोर -
उपवन हर्षित माण से बुलबुल बैठे साख
उलूक विराजे ड़ाल जब हुई प्रतिष्ठा राख़ -
प्रीत का पंछी रोता है दुख और सुख निरवैर
छूटा हाथ विछोह में या प्रीतम के घर पैर


उदय वीर सिंह