अम्मा मत रो ! अब मैं ठीक हूँ देख अब मुझे दर्द नहीं है । देखो मैं कहाँ रो रहा हूँ , हाँ अम्मा प्रीतम अपनी अम्मा का हाथ अपने हाथ मे ले अपने सिने पर घूमाता है ।
माँ शांति देवी अपने बेटे की वेदना को समझ रही है ,जितना सब्र कर रही है उतना ही बेटे की सब्र की सीमा महसूस कर व्यग्र हो उठती है । डाक्टर के पास लंबी कतार है , नंबर भी आया है एक सप्ताह के बाद। लगता है आज भी रात के एग्यारह - बारह के बाद ही नंबर आ पाएगा । प्रीतम की बेचैनी बढ़ रही है पर अम्मा को बता कर और परेशानी बढ़ाना नहीं चाहता । अम्मा पहले से ही दुखी है ।
बाबू जी मेरे प्रीतम को पहले दिखा दीजिये सवेरे से बैठे हैं लाइन में शाम हो गयी ,मेरा बेटा प्रीतम अधमरा सा हो गया है । डाक्टर के अटेंडेंट से आँचल हाथ में ले गिड़गिड़ाती हुई शांति देवी ने याचना की ।
ए माताजी ! जब नंबर आएगा तभी अंदर भेजेंगे । अगर जल्दी है तो कहीं और जाकर दिखाओ ।
बाबूजी मेरा बेटा बहुत तकलीफ में है , अब सहा नहीं जा रहा है । एक बार डाक्टर साहब से कह देते । आसू पोंछते शांति देवी ने मासूमियत से कहा ।
ए औरत क्या चिल्ला रही है हम लोगन भी तो नंबर लगा के ही आए हैं, सवेरे से इंतजार में हैं , कई आवाजें पीछे भीड़ से आई ।
शांति देवी सहम गई आकर बेटे प्रीतम के पास सिसकियाँ भरते उसे टटोल संभालने लगी ।
बेटा ! बेटा ! प्रीतम ! थोड़ा धीरज रखो,हिम्मत नहीं हारना, मैं तेरे साथ हूँ , हाँ मरते दम तक साथ । हम कोई बड़े आदमी अमीर साहब सूबा थोड़े हैं की कोई मेरी मदद करेगा। बेटा सब्र करना होगा डॉ साहब आप को जरूर देखेंगे । अपने आप से बुदबुदा कहा रही थी । प्रीतम की दशा बिगड़ रही थी । खराब होती हालत देख अम्मा विचलित हो रही थी ।
कोई फर्क नहीं पड़ा न अस्पताल के कर्मचारी न डाक्टर पर मानों सब गूंगे बहरे हो गए हों । पीछे पास में एक महिला अपने बेटी को दिखाने आई थी से न रहा गया बोल उठी-
ये कहाँ का इंसाफ है जी ! हम इंतजार में है हमसे बाद में आए लोग अपने मरीजों को दिखा कर चले गए ये । पैसे वाले सिफ़ारिश वाले दबंग लोगों के लिए लाइन नहीं है । उनके ऊपर कोई कानून नहीं बना क्या ? इस बच्चा की हालत सिरियस है, और नंबर का खेल हो रहा है । पहले इस मरीज को दिखाओ । कुछ तो रहम करो बेरहमों ।
कुछ और लोगों ने समर्थन किया । डाक्टर व उसके कर्मियों की तंद्रा टूटी। डाक्टर बाहर आया । कर्मी सन्नद्ध हुये । प्रीतम को अंदर ले जाने की तैयारी करने लगे की प्रीतम अम्मा की बाहों में एक तरफ लुढ़क गया । अपनी बची खुची हिम्मत वह छोड़ गया । हार गया जिंदगी से ।
शाम का धुंधलका छाने लगा था ,तपन कुछ कम हुई थी मरीजों में कानाफूशी होने लगी थी । डाक्टर व उसके कर्मियों पर उँगलियाँ उठने लगी थी । कोई कहता -
एक हफ्ते से नंबर लगा कर सुबह से शाम हो गई डाक्टर साहब चाहते तो बच्चे को बचा सकते थे
अरे भाई तमाम सिफारिस वालों का अधिकारियों नेताओं को कोई लाइन नहीं लगानी पड़ी । अगर लाइन तोड़ कर ही देख लेते तो क्या हो जाता उसकी हालत कितनी खराब थी ।
डाक्टर के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए कई लोगों ने समर्थन किया
अनन फानन में डाक्टर ने देखने की औपचारिकता निभा प्रीतम को पी जी आई लखनऊ रेफर कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री पा लिया । कर्मियों को जितना शीघ्र हो सके इस मरीज को कैंपस से बाहर करने का निर्देश दे अपने कार्य में मशगूल हो गया । बाहर कुछ देर तक चर्चा होती रही ,फिर समाप्त लोग अपने मरीजों को दिखा अपने गंतव्य चलते गए ।
अंबुलेंस अस्पताल से प्रीतम को ले बाहर निकल आई ।
पी जी आई चलना है न माता जी ? ड्राइवर ने पूछा ।
कोई पचास हजार का कम से कम खर्चा आएगा, आगे वहाँ भर्ती होने पर अलग ...
बाबू जी ! अब कुछ और बेचने को नहीं है, हम कहाँ से इतना पैसा पाएंगे ।
माता जी ! एक बात कहूँ ड्राइवर ने कहा
बताइये अब क्या उपाय करूँ । शांति देवी ने कहा ।
अब सारी कोशिश बेकार है , डाक्टर साहब ने अपना पिंड छुडाने के लिए पी जी आई रेफर किया है । आपका बेटा अब दुनियाँ छोड़ चुका है । एम्बुलेंस किनारे लगा ड्राइवर बड़ी साफ़गोई से बताया ।
माँ शांति देवी, प्रीतम के मृत शरीर से लिपट संज्ञा- सून्य हो चुकी थीं ।
उदय वीर सिंह